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________________ प्र. १ : उ. १ : प्र. ३ : प्र. २: मनुष्यभवको उत्तम क्यों कहते हैं ? उ. २ : उ. ३ : प्र. ४ उ. ४ : १. मनुष्यभव मनुष्यभव किसे कहते हैं ? दीर्घ कालसे संसारमें भ्रमण कर रही अपनी आत्मा को, पांच इन्द्रियाँ और मन सहित इस उत्तम शरीरमें अमुक निश्चित काल तक रहनेका जो 'लायसंस' प्राप्त हुआ है वही अपनेको मिला हुआ मनुष्यभव है | उ. ५ : अन्य शरीरोंकी अपेक्षा इस शरीरमें रहनेवाली आत्माओमें विशेष प्रकारसे सत्य - विवेक पानेकी सुविधा है इसलिए उसे उत्तम कहते हैं । क्या मनुष्यभवको प्राप्त सभी आत्माओंका कल्याण होता ही है ? हो अथवा न भी हो । किन मनुष्य आत्माओंका कल्याण होता है ? जो सत्य - पुरुषार्थ द्वारा सद्गुरु सत्शास्त्र आदिसे अपना सच्चा स्वरूप जाननेका उद्यम करें और सच्ची श्रद्धा, सच्चे ज्ञान और सच्चे आचरणका सेवन करें, उनका कल्याण होता है । प्र. ५ : किन मनुष्य - आत्माओंका कल्याण नहीं होता ? जो मनुष्य आलस्य, निद्रा, परनिंदा और हिंसादि पापभावों में ही तन्मय रहते हैं और सत्संग - सद्विचारका सेवन For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001292
Book TitleAdhyatmagyan Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba
Publication Year2005
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Philosophy
File Size2 MB
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