SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशकीय निवेदन. मनुष्य शाश्वत आनंदकी प्राप्ति चाहता है; और यह बात भी सर्वधर्म सम्मत है कि ऐसे आनंदकी प्राप्ति केवल आत्मज्ञानसे ही हो सकती है । वह आत्मज्ञान सत्य तत्त्वके परिज्ञानसे, वैराग्यसे और अभ्याससे क्रमशः प्रगट हो सकता है । तत्त्वज्ञानकी प्राप्ति इस कालमें प्रत्यक्ष सद्गुरु-बोधके अनुपम लाभ द्वारा किन्हीं विरल पुरुषोंको हीं हो सकती है । इसलिए वर्तमानमें ज्ञानप्राप्तिका मुख्य आधार पूर्वाचार्यों और संतोंकी अनुभववाणी एवं उनके द्वारा लिखे गये सिद्धान्तशास्त्र हैं। इस प्रकारके सिद्धान्तशास्त्र और उनकी गूढ़ अनुभववाणीको वास्तविक रूपसे समझनेकी पात्रता आनेके प्रयोजनसे, अध्यात्मका अल्प और प्राथमिक कक्षाका ज्ञान पू. श्री आत्मानंदजीने इस पुस्तिकामें अवतरित किया है। बिल्कुल सरल भाषामें, मोक्षसाधनामें उपयोगी हों ऐसे केवल थोड़े मुख्य विषयोंको यहाँ प्रश्नोत्तरीके रूपमें रखा गया है, जिससे पठनकी सरलता हो, जिज्ञासुमें विचारदशा उत्पन्न हो और ऐसा होने पर उन्हें अध्यात्मज्ञानरूपी समुद्रमें प्रवेश पानेकी योग्यता प्राप्त हो । इस प्रकाशनका यही प्रशस्त हेतु होनेसे इसका नाम 'अध्यात्मज्ञान- प्रवेशिका रखा गया है । तत्त्वजिज्ञासुको इस पुस्तिकाके वांचन मननसे महाज्ञानियों और पूर्वाचार्योंके ग्रन्थ पढ़नेका सच्चा भाव जगे और उन भावोंके अनुसार उसे शुद्धात्म तत्त्वकी प्रतीति, लक्ष और अनुभवकी प्राप्ति हो ऐसी भावना करते हैं । Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001292
Book TitleAdhyatmagyan Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba
Publication Year2005
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Philosophy
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy