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अध्यात्मज्ञान-प्रवेशिका (ब) पंडित-मरण : आत्मज्ञान सहित संयमीको प्राप्त
होता है। (क) बाल-पंडित-मरण : ज्ञानी, परन्तु संयमी न हो
ऐसे सम्यग्दृष्टिको प्राप्त होता है । ये तीन समाधिमरणके प्रकार हैं । अन्य दो प्रकारके मरण निम्नलिखित हैं। बाल मरण : सत्पुरुषकी और तत्त्वकी व्यावहारिक श्रद्धा करे, परन्तु पारमार्थिक श्रद्धा न करे और तत्त्वका भावभासन न हुआ हो तो ओघसंज्ञा या लोकसंज्ञासे आराधना किया करे, ऐसे पुरुषके
मरणको बालमरण कहते हैं। (इ) बाल-बाल मरण : परमार्थसे सर्वथा विमुख ऐसे
जगतके धर्मरहित जीवोंके मरणको बाल-बालमरण
कहा गया है। प्र. ५ : सल्लेखना कब लेनी चाहिए ? उ. ५ : अत्यन्त वृद्धावस्था, असाध्य रोग, दुष्काल या घोर उपसर्ग
के कारण जब मृत्यु समीप लगे, तब धर्मको रक्षाके लिए शरीरका त्याग करना चाहिए । इस साधनाको सल्लेखना
कहते हैं। प्र. ६ : सल्लेखना द्वारा समाधिमरणकी क्या विधि है ? उ. ६ : समाधिमरणमें कषायको क्षीण करना है और साथ ही
साथ शरीरको भी कृश करना है । जब समाधिमरणका
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