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अन्धकार के पार
श्रमण भगवान महावीर के युग की बात है—कृतांगला नगरी में सिंहरथ नाम का राजा राज्य करता था। उसकी सुनन्दा नाम की रानी थी। सुनन्दा के एक पुत्र हुआ, जिसका नाम रखा गया 'दमसार ।'
राजकुमार दमसार युगवस्था में पहुंचा तो माता-पिता उसके विवाह को तैयारियाँ करने लगे। परन्तु, इसी बीच दमसार ने प्रभु महावीर की वाणी सुनी तो उसका हृदय ज्ञान - वैराग्य की रसधार में गहरी डुबकी लगा गया, उसने माता-पिता के समक्ष दीक्षा का प्रस्ताव रखा।
उत्कट वैराग्य का प्रवाह उमड़ता है, तो उसे कोई रोक नहीं सकता । माता-पिता ने, परिजन एवं पुरजनों ने बहुत कुछ इधर-उधर के उतार चढ़ाव किए, एक-से-एक बढ़कर स्नेह-बन्धन डाले, किन्तु दृढ़ - निश्चयी दमसार ने अत्यन्त आग्रह करके अन्ततः माता - पिता से दीक्षा की स्वीकृति ले . ही ली और प्रभु महावीर के चरणों में जाकर मुनि - धर्म स्वीकार कर लिया।
दमसार ऋषि अब शास्त्राध्ययन करके तीव्र तपः साधना
में जुट गये। तपस्वी को ही उन्होने अपनी धर्म - साधना Jain Education International For Private & Personal Use Only
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