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________________ आखिर, प्रश्न समाधान पा गया ८ थावच्चा पुत्र, हाँ, बस यही नाम समझ लीजिए । वैसे इतिहासकारों को उसके असली नाम का पता नहीं है । उसकी माता का नाम थावच्चा था, और इसलिए वह माता के नाम पर थावच्चा-पुत्र के नाम से प्रसिद्ध हो गया। __ थावच्चा-पुत्र जन्म से ही जागृत मस्तिष्क लेकर आया था। आमतौर पर गुलाबी बचपन खेल - खिलौनों की भूलभुलैया में भ्रमित रहता है, परन्तु थावच्चा पुत्र का बचपन कुछ विलक्षण ही था। वह जो कुछ भी देखता या सुनता, उसमें गहरा उतरता । उसका मन प्रश्नों से भर जाता और वस्तुस्थिति की तह तक पहुंचे बिना वह कभी भी चैन से नहीं बैठता। एक बार की बात है, थावच्चा पुत्र अपने सप्तभूमि प्रासाद की सातवीं मंजिल पर खड़ा नगर की शोभा देख रहा था । प्रातःकाल का समय था । सूर्य पूर्व के क्षितिज पर ऊपर उठ आने के लिए उजलो किरणों के रूप में अपने हजारों हाथ फैलाए हुए था । इधर-उधर बिखरे मेघ - खण्ड स्वर्णाभ हो रहे थे। गगनचुम्बी महलों के स्वर्ण कलश सूरज की सुनहली किरणों के स्पर्श से चमचमा रहे थे। शोतल मंद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001291
Book TitleJain Itihas ki Prerak Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1987
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, N000, & N035
File Size4 MB
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