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आला।
जैन इतिहास की प्रेरक कथाएँ की मूर्खता क्यों करूँ ?-नर्तकी ने यह जो बोध दिया है, उसी के उपलक्ष्य में मैंने हीरे की अंगूठी उसे दे डाली।
__ रंगमंडप में श्रृंगार रस को जगह शान्त रस का स्रोत उमड़ पड़ा। मुनि, राजकुमार, कुल-वधू और मंत्री के उद्बोधक प्रसंग सुनकर राजा का हृदय प्रबुद्ध हो उठा। सोचा"अब मेरे जीवन की सान्ध्य-वेला आ चुकी है, भोगों में कब तक फंसा रहूँगा ? अब तो यह सब छोड़कर आत्म - साधना की ओर उन्मुख होना चाहिए।" राजा ने अपने पुत्र को राज-सिंहासन सौंपा और स्वयं क्षुल्लकमुनि के साथ आचार्य के चरणों में पहुंच कर प्रवजित हो गया।
जागति की लहर जब उठती है, तो वह एक ही लहर अनेक हृदयों को नव-जीवन दे जाती है। एक ही दीप अनेक दीप जला देता है । दीप से दीप प्रज्वलित होते जाते हैं।
- उपदेशप्रासाद ४/१२१
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