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आन्दोलित और गतिशील बनाता है। इसी मनोवैज्ञानिक भूमिका पर आदिकाल से आज तक कथा-साहित्य निरन्तर अपने असंख्यअसंख्य रूपों में व्यक्त होता रहा है।
प्रस्तुत पुस्तक-'जैन इतिहास की प्रेरक कथओं'–में जीवन की उदात्त प्रेरणाओं को जगाने वाली एवं आत्मा की सुप्त सद्वृत्तियों को आन्दोलित करने वाली कुछ प्रेरक कथाएं ली गई हैं । जैन इतिहास के साथ इन कथाओं का सूत्र जुड़ा हुआ है। कुछ कथाएं अत्यन्त प्राचीन ग्रन्थों में स्थान-स्थान पर सूचित की गई हैं, जिससे उनकी सार्वजनिक प्रेरणा एवं व्यापकता का अनुमान किया जा सकता है। 'तीन गाथाएँ, धर्म का सार' 'दीप-से-दीप जले, आदि कुछ कथाओं का तो प्राचीन आचारांग और सूत्रकृतांग की नियुक्ति में व चूर्णि में भी उल्लेख मिलता है। कुछ कथाएं काल की दृष्टि से अत्यन्त प्राचीन एवं प्रेरणा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होते हुए भी खोजने पर प्राचीन कथा - ग्रन्थों में उनका उल्लेख नहीं मिल सका। यद्यपि श्रुति-परम्परा में उनका महत्त्व शास्त्रीय कथाओं से कम नहीं हैं। जैसे- ब्रह्मचारी दम्पती (विजय और विजया) 'आखिर प्रश्न समाधान पा गया' आदि ।
जिस कथा-ग्रन्थ या उपदेश-ग्रन्थ में जो कथासूत्र पहले से कुछ परिवर्तित या विकसित रुप में मिला है, उसका उल्लेख भी कथा के साथ ही कर दिया गया है। इससे कथासूत्र के ऐतिहासिक विकास, व सामयिक परिवेश की सामान्य जानकारी भी प्राप्त हो सकती है। उदाहरण के रूप में धर्म के तीन पद' कया मूलतः ज्ञाता सूत्र
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