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कथा की अर्थकारिता भारतीय कथा-साहित्य के विभिन्न उद्देश्यों तथा अभिप्रायों में से एक मूल अभिप्राय है --उपदेश, सद्बोध या प्रेरणा। उपदेश या बोध-वचन मात्र कहानी नहीं हो सकते, किन्तु किसी भी रोचक एवं जीवनस्पर्शी घटना-सूत्र के माध्यम से जब जीवन की उदात्त प्रेरणा व्यक्त होती है, उसे हम उपदेश-कथा, बोध-कथा या प्रेरक-कथा कह सकते हैं।
जैन-साहित्य में इस प्रकार की सहस्रत्रों प्रेरक कथाएँ संकलित हुई हैं, जिनके स्वरों में जीवन की कोई न कोई महान प्रेरणा, कोई. न-कोई उदात्त विचार तथा कोई - न - कोई अद्भुत उपलब्धि का सरगम स्वर झंकृत होता सुनाई देता है।
सदाचार, ज्ञान, विवेक, तीतिक्षा, धैर्य, शान्ति, दीर्घप्रज्ञता, संतोष और आत्म-निरीक्षण आदि मानवीय गुणों से ही जीवन का परिष्कार और विकास होता है । उन्नत एवं महान् जीवन के लिए इन गुणों का आधार उसी प्रकार आवश्यक है, जिस प्रकार कि स्वस्थ जीवन के लिए शुद्ध प्राण-वायु ।
मनुष्य स्वभावतः उपदेश-प्रिय नहीं, अनुकरण-प्रिय है , अनुकरण उसकी मूलवृत्ति है। वह उपदेश की अपेक्षा अनुकरण से ज्यादा और जल्दी सीख पाता है।
मनुष्य के मन में मानवीय गुणों की भावना और प्रेरणा जगाने के लिए उपदेशात्मक श्लोकों की अपेक्षा किसी अनुकरणीय चरित्र का आदर्श अधिक प्रभावशाली होता है चरित्रात्मक आदर्श उसकी अनुकरण वृत्ति को बड़ी शीघ्रता से उत्त जित करता है,
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