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४. शाकटायनन्यास : शाकटायनव्याकरण व्याख्या ५. शब्दाम्भोजभास्कर : जैनेन्द्रव्याकरण व्याख्या ६. प्रवचनसारसरोज भास्कर : प्रवचनसार व्याख्या ७. गद्यकथाकोश : स्वतन्त्र रचना ८ रत्न करण्डश्रावकाचार : टीका ६. समाधितन्त्र : टीका १०. क्रियाकलाप : टीका ११. प्रात्मानुशासन : टीका १२. महापुराण : टिप्पण
प्राचार्य जुगुलकिशोर मुख्तार ने रत्नकरण्डश्रावकाचार की प्रस्तावना में रत्नकरण्ड श्रावकाचार की टीका और समाधितन्त्र की टीका को प्रस्तुत प्रभाचन्द्र द्वारा रचित न मानकर किसी अन्य प्रभाचन्द्र की रचनाएं माना है । पर जब प्रभाचन्द्र का समय ११ वीं शताब्दी सिद्ध होता है तो इन ग्रन्थों के उद्धरण रह भी सकते हैं । रत्नकरण्ड टीका और समाधितन्त्र टीका में प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्र का एक साथ विशिष्ट शैली में उल्लेख होना भी इस बात का सूचक है कि ये दोनों टीकाएं प्रसिद्ध प्रभाचन्द्र की ही हैं। यथा
"तदलमतिप्रसंगेन प्रमेय कमलमार्तण्डे न्यायकुमुदचन्द्रे प्रपञ्चत! प्ररूपणात् ।'– रत्नकरण्डटीका पृष्ठ ६ । “यैः पुनयोगसांख्य मुक्तौ तत्प्रच्युतिरात्मनोऽभ्युपगता ते प्रमेयकमलमार्तण्डे न्यायकुमुदचन्द्रे च मोक्षविचारे विस्तरतः प्रत्याख्याताः ।"-समाधितन्त्र टीका पृ० १५ ।
ये दोनों अवतरण प्रभाचन्द्र कृत शब्दाम्भोज भास्कर के उद्धरण से मिलते-जुलते हैं"तदात्मकत्वं चार्थस्य अध्यक्षतोऽनुमानादेश्च यथा सिद्धयति तथा प्रमेयकमलमार्तण्डे न्याय कुमुदचन्द्रे च प्ररूपितमिह द्रष्टव्यम् ।'- शब्दाम्भोजभास्कर ।
प्रभाचन्द्रकृत गद्यकथाकोष में पाई जाने वाली अंजन चोर आदि की कथाएँ रत्नकरण्डश्रावकाचारगत कथाओं से पूर्णतः मिलती हैं। अतएव रत्नकरण्ड श्रावकाचार और समाधितन्त्र की टीकाएँ प्रस्तुत प्रभाचन्द्र की ही हैं।
क्रियाकलाप की टीका की एक हस्तलिखित प्रति बम्बई के सरस्वती भवन में है। इस प्रति की प्रशस्ति में क्रियाकलाप टीका के रचयिता प्रभाचन्द्र के गुरु का नाम पद्मनन्दि सैद्धान्तिक है और,
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