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सप्तभंगीविवेचनम्
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'सकलविकलादेशकृतः' इति ब्रूमः । विकलादेशस्वभावा हि नयसप्तभंगी वस्त्वंशमात्रप्ररूपकत्वात् । सकलादेशस्वभावा तु प्रमाणसप्तभंगी यथावद्वस्तुरूपप्ररूपकत्वात् । तथा हि-स्यादस्ति जीवादिवस्तु स्वद्रव्यादिचतुष्टयापेक्षया । स्यान्नास्ति परद्रव्यादिचतुष्टयापेक्षया। स्यादुभयं क्रमापितद्वयापेक्षया । स्यादवक्तव्यं सहापितद्वयापेक्षया । एवमवक्तव्योत्तरास्त्रयो भंगाः प्रतिपत्तव्याः ।
समाधान- सकलादेश और विकलादेश को अपेक्षा विशेषता या भेद है। वस्तु के अंशमात्र का प्ररूपक होने से नय सप्तभंगी विकलादेश स्वभाव वाली है और यथावत् वस्तु स्वरूप [ पूर्ण वस्तु ] की प्ररूपक होने से प्रमाण सप्तभंगी सकलादेश स्वभाव वाली है। ऊपर नय सप्तभंगी के उदाहरण दिये थे अब यहां प्रमाण सप्तभंगी का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं-स्यात् अस्ति जीवादि वस्तु स्वद्रव्य क्षेत्र काल भाव की अपेक्षा १ स्यात् नास्ति जीवादि वस्तु पर द्रव्य क्षेत्र काल भाव की अपेक्षा २ स्यात् अस्ति नास्ति जीवादि वस्तु क्रमापित स्व द्रव्यादि एवं परद्रव्यादि की अपेक्षा ३ स्यात् जीवादि वस्तु अवक्तव्य सहअर्पित स्वपरद्रव्यादि अपेक्षा ४ स्यात् जीवादि वस्तु अस्ति वक्तव्य स्वद्रव्यादि और अक्रम की अपेक्षा ५ स्यात् जीवादि वस्तु नास्ति अवक्तव्य परद्रव्यादि और अक्रम की अपेक्षा ६ स्यात् जीवादिवस्तु अस्ति नास्ति अवक्तव्य स्वद्रव्यादि और परद्रव्यादि तथा अक्रम की अपेक्षा ७ इसप्रकार प्रमाण सप्तभंगी को समझना चाहिये ।
विशेषार्थ-यहां पर प्रश्न हुआ कि नयसप्तभंगी और प्रमाण सप्तभंगी में क्या विशेष या अन्तर है ? इसके उत्तर में आचार्य ने कहा कि इनमें विकलादेश और सकलादेश की अपेक्षा विशेष या अंतर है । प्रमाण ज्ञान सकलादेश-पूर्णरूप से वस्तु का ग्राहक है और नयज्ञान विकलादेश-अंशरूप से वस्तु का ग्राहक है। प्रमाण सप्तभंगी
और नयसप्तभंगी में मौलिक अंतर यह दिखता है कि नयसप्तभंगी में नास्तित्व की व्यवस्था कराने के लिये विरुद्ध धर्म अपेक्षणीय है और प्रमाण सप्तभंगी में नास्तित्व धर्म की व्यवस्था के लिये अविरुद्ध आरोपित धर्म से नास्तित्व की व्यवस्था है । अथवा सर्वथा भिन्न पदार्थों की अपेक्षा विरुद्ध पदार्थों की ओर से भी नास्तित्व बन जाता है । तथा प्रमाण सप्तभंगी और नयसप्तभंगी में अन्य धर्म की अपेक्षा रखना और अन्य धर्म की उपेक्षा रखना यह भेद भी प्रसिद्ध है ।
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