________________
• नय विवेचनम्
६५७ तथैव तद्व्युत्पाद्यते । तत्राऽनिराकृतप्रतिपक्षो वस्त्वंशग्राही ज्ञातुरभिप्रायो नयः। निराकृतप्रतिपक्षस्तु नयाभासः । इत्यनयोः सामान्यलक्षणम् । स च द्वधा द्रव्यार्थिक-पर्यायाथिकविकल्पात् । द्रव्यमेवार्थो विषयो यस्यास्ति स द्रव्याथिकः । पर्याय एवार्थो यस्यास्त्यसौ पर्यायाथिकः । इति नयविशेषलक्षणम् । तत्राद्यो नेगमसंग्रहव्यवहारविकल्पात् त्रिविधः । द्वितीयस्तु ऋजुसूत्रशब्दसमभिरूढवंभूतविकल्पाच्चतुर्विधः ।
तत्रानिष्पन्नार्थसङ्कल्पमात्रग्राही नैगम।। निगमो हि सङ्कल्पः, तत्र भवस्तत्प्रयोजनो वा नेगमः। यथा कश्चित्पुरुषो गृहीतकुठारो गच्छन् 'किमर्थं भवान्गच्छति' इति पृष्टः सन्नाह-'प्रस्थमानेतुम्' इति । एधोदकाद्याहरणे वा व्याप्रियमाण: "किं करोति भवान्' इति पृष्टः प्राह-'प्रोदनं पचामि' इति । न
अब प्रभाचन्द्र आचार्य नयों का विवेचन करते हैं-नय का लक्षण सामान्य और विशेष रूप से हुअा करता है अतः उसी रूप से प्रतिपादन किया जाता है ।
नयों का सामान्य लक्षण-प्रतिपक्ष का निराकरण नहीं करने वाला एवं वस्तु के अंश का ग्रहण वाला ऐसा जो ज्ञाता पुरुष का अभिप्राय है वह नय कहलाता है।
नयाभास का लक्षण-जो प्रतिपक्ष का निराकरण करता है वह नयाभास है। इसप्रकार नय और नयाभास का यह सामान्य लक्षण है । नय मूल में दो भेद वाला है द्रव्याथिकनय और पर्यायाथिकनय । द्रव्य ही जिसका विषय है वह द्रव्याथिकनय है और पर्याय हो जिसका विषय है वह पर्यायार्थिक नय है। यह नय का विशेष लक्षण हुआ।
आदि के द्रव्याथिकनय के नैगम, संग्रह और व्यवहार ऐसे तीन भेद हैं । पर्यायाथिकनय के चार भेद हैं, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत ।
नगम नय का लक्षण-जो पदार्थ अभी बना नहीं है उसके संकल्प मात्र को जो ग्रहण करता है वह नैगमनय है। निगम कहते हैं संकल्प को, उसमें जो होवे सो नंगम अथवा निगम अर्थात् संकल्प जिसका प्रयोजन है वह नैगम कहलाता है। जैसे कोई पुरुष हाथ में कुठार लेकर जा रहा है उसको पूछा कि आप कहां जा रहे हैं, तब वह कहता है प्रस्थ [करीब एक किलो धान्य जिससे मापा जाय ऐसा काष्ट का बर्तन विशेष] लाने को जा रहा हूँ। अथवा लकड़ी, जल आदि को एकत्रित करने वाले पुरुष को पूछा आप क्या कर रहे हैं ? तो वह कहता है "भात पका रहा हूं"। किन्तु इस
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org