SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 613
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 8888 २० जय-पराजयव्यवस्था -.- NAINA इत्यप्युक्त तत्रैव । प्रथेदानी प्रतिपन्नप्रमाणतदाभासस्वरूपाणां विनेयानां प्रमाणतदाभासावित्यादिना फलमादर्शयतिप्रमाण-तदाभासी दुष्टतयोद्भावितौ परिहता-ऽपरिहृतदोषी वादिनः साधन-तदाभासो प्रतिवादिनो दूषण-भूषणे च ।। ७३ । प्रतिपादितस्वरूपी हि प्रमाणतदाभासौ यथावत्प्रतिपन्नाप्रतिपन्नस्वरूपो जयेतरव्यवस्थावा निबन्धनं भवतः। तथाहि-चतुरङ्गवादमुररीकृत्य विज्ञातप्रमाणतदाभासस्वरूपेण वादिना सम्यक __ अब जिन्होंने प्रमाण और प्रमाणाभास का स्वरूप जाना है ऐसे शिष्यों को प्रमाण और प्रमाणाभास जानने का फल क्या है सो बताते हैंप्रमाण तदाभासी दुष्टतयोद्भावितौ परिहृतापरिहृतदोषौ वादिनः साधन तदाभासो प्रतिवादिनो दूषण भूषणे च ।।७३।। अर्थ-प्रमाण और प्रमाणाभास का स्वरूप बता चुके हैं, यदि इनका स्वरूप भली प्रकार जाना हुआ है तो वाद में जय होता है और यदि नहीं जाना हना है तो पराजय होता है, इसका खुलासा करते हैं-वाद के चार अंग हुआ करते हैं सभ्य, सभापति, वादी और प्रतिवादी, इनमें जो वादी है [ सभा में पहली बार अपना पक्ष उपस्थित करने वाला पुरुष] वह यदि प्रमाण और प्रमाणाभास का स्वरूप जाना हुआ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy