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________________ तदाभासस्वरूपविचारः ५३५ शेषणासिद्धो यथा-अद्यापि रागादियुक्तः कपिलः सर्वदा तत्त्वज्ञानरहितत्वे सति पुरुषत्वात् । एते एवासिद्धभेदाः केचिदन्यतरासिद्धाः केचिदुभयासिद्धाः प्रतिपत्तव्याः। ___ ननु नास्त्यन्यतरासिद्धो हेत्वाभासः; तथाहि-परेणासिद्ध इत्युद्भाविते यदि वादी तत्साधकं प्रमाणं न प्रतिपादयति, तदा प्रमाणाभासवदुभयोरसिद्धः । अथ प्रमाणं प्रतिपादयेत् ; तहि प्रमाणस्यापक्षपातित्वादुभयोरप्यसौ सिद्धः । अन्यथा साध्यमप्यन्यतरासिद्ध न कदाचित्सिद्धये दिति व्यर्थः संदिग्धविशेष्यासिद्ध का उदाहरण इसप्रकार कहते हैं-कपिल नामा सांख्य का गुरु अभी भी राग मोहादि से युक्त है, क्योंकि पुरुष होकर उसे तत्व ज्ञान नहीं हुआ है । संदिग्ध विशेषण प्रसिद्ध हेत्वाभास का उदाहरण-कपिल अभी भी रागादिमान है, क्योंकि तत्त्वज्ञान रहित होकर पुरुष है । इन दोनों अनुमानों में पुरुषत्व और तत्त्वज्ञान रहितत्व क्रमशः विशेष्य और विशेषण है वह असिद्ध है। ये विशेष्यासिद्ध इत्यादि हेत्वाभास बतलाये हैं उनमें से कोई कोई हेत्वाभास ऐसे हैं कि वादी प्रतिवादियों में से किसी एक को प्रसिद्ध हैं, तथा कोई कोई ऐसे हैं कि दोनों को प्रसिद्ध हैं। शंका-वादी प्रतिवादियों में से एक के प्रति असिद्ध हो ऐसा कोई हेत्वाभास नहीं होता किन्तु जो भी हेतु प्रसिद्ध होगा तो दोनों के प्रति ही असिद्ध होगा। इसो को बताते हैं-वादी प्रतिवादी विवाद कर रहे हैं उस समय प्रतिवादो ने वादी को कहा कि तुम्हारा कहा हुआ अनुमान का हेतु प्रसिद्ध है, तब उस वाक्य को सुनकर वादी यदि अपने हेतु को सिद्ध करने वाला प्रमाण नहीं बताता है तो वह हेतु प्रमाणाभास के समान दोनों के लिए ही प्रसिद्ध कहलायेगा, अर्थात् जैसे प्रमाणाभास दोनों को अमान्य है वैसे वह हेतु बनेगा, क्योंकि जिस वादी ने हेतु प्रयुक्त किया है उसने उसे सिद्ध नहीं किया । यदि वह वादी अपने हेतु को सिद्ध करने वाले प्रमाण को उपस्थित करता है तो जो भी प्रमाण होगा वह पक्षपात रहित उभय मान्य होगा अतः प्रमाण सिद्ध वह हेतु सिद्ध हो कहलायेगा । अपने हेतु को प्रमाण द्वारा सिद्ध करके दिखाने पर भी उसे असिद्ध माना जाय तो साध्य कभी भी सिद्ध नहीं होगा क्योंकि वह भी दोनों में से एक को प्रसिद्ध रहता है, और इसतरह साध्य किसी प्रकार भी यदि सिद्ध नहीं होगा तो उसके लिए प्रमाण को उपस्थित करना व्यर्थ ही है। अभिप्राय यही हुआ कि वादी प्रतिवादी दोनों को प्रसिद्ध ऐसा ही प्रसिद्ध हेत्वाभास होता है, एक को प्रसिद्ध और एक को सिद्ध ऐसा नहीं होता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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