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________________ प्रमेयकमलमार्त्तण्डे असम्बन्धे तज्ज्ञानं तर्काभासम्, यावांस्तत्पुत्रः स श्यामः इति यथा ।। १० ।। व्याप्तिज्ञानं तर्क इत्युक्तम् । ततोन्यत्पुनः प्रसम्बन्धे - प्रव्याप्तौ तज्ज्ञानं = व्याप्तिज्ञानं तर्काभासम् । यावस्तत्पुत्रः स श्याम इति यथा । इदमनुमानाभासम् ॥। ११ ॥ ५२० असंबंधे तज्ज्ञानं तर्काभासम् यावांस्तत् पुत्रः स श्यामः इति यथा ॥ १०॥ संबंध का ज्ञान अर्थ - जिसमें व्याप्ति संबंध नहीं है ऐसे असंबद्ध पदार्थ में होना तर्काभास है, जैसे मंत्री का जो भी पुत्र है वह श्याम [ काला ] ही है इत्यादि । व्याप्ति ज्ञान को तर्क कहते हैं ऐसा पहले बता दिया है, उस लक्षण से अन्य जो ज्ञान हो वह तर्काभास है, व्याप्ति ज्ञान का लक्षण बतलाते हुए कहा था कि "उपलं भानुपलंभनिमित्तं व्याप्तिज्ञान मूहः " उपलम्भ और अनुपलम्भ के निमित्त से व्याप्ति का ज्ञान होना तर्क प्रमाण है, जैसे जहां जहां घूम होता है वहां वहां अग्नि होती है, और जहां अग्नि नहीं होती वहां धूम भी नहीं होता इत्यादि, इसप्रकार साध्य और साधन के अविनाभावपने का ज्ञान होना अर्थात् इस साध्य के बिना यह हेतु नहीं होता- इस हेतु का साध्य के साथ अविनाभावी संबंध है इसतरह संबंधयुक्त पदार्थ का ज्ञान तो तर्क है किन्तु जिसमें ऐसा अविनाभावी सम्बन्ध नहीं है, उनमें संबंध बताना तो तर्काभास ही है, जैसे किसी अज्ञानी ने अनुमान बताया कि यह मैत्री के गर्भ में स्थित जो बालक है वह काला होगा, क्योंकि वह मैत्री का पुत्र है, जो जो मैत्री का पुत्र होता है वह वह काला ही होता है, जैसे वर्त्तमान में उसके और भी जो पुत्र हैं वे सब काले हैं । इस अनुमान में मैत्री के पुत्र के साथ काले रंग का अविनाभाव सम्बन्ध जोड़ा है वह गलत है, यह जरूरी नहीं है कि किसी के वर्तमान के पुत्र काले हैं अतः गर्भ में प्राया हुआ पुत्र भी काला ही हो । जो साधन प्रर्थात् हेतु साध्य के साथ अविनाभावी हो साध्य के बिना नहीं होता हो उसीको हेतु बनाना चाहिये ऐसे हेतु से ही अनुमान सही कहलाता है अन्यथा वह अनुमानाभास होता है और ऐसे अविनाभाव संबंध के नहीं होते हुए भी उसको मानना तर्काभास है । Jain Education International इदमनुमानाभासम् ॥११॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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