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________________ फलस्वरूपविचार: योऽनेकान्तपदं प्रवृद्धमतुलं स्वेष्टार्थसिद्धिप्रदम्, प्राप्तोऽनन्तगुणोदयं निखिल विन्निःशेषतो निर्मलम् । श्रीमानखिल प्रमाणविषयो जीयाज्जनानन्दनः, मिथ्यैकान्तमहान्धकाररहितः श्रीवर्द्धमानोदितः ॥ इति श्रीप्रभाचन्द्रविरचिते प्रमेयकमलमार्तण्डे परीक्षामुखालङ्कारे चतुर्थः परिच्छेदः ॥ श्रीः ॥ हैं। अस्तु । यहां पर श्राचार्य प्रभाचन्द्र इस परिच्छेद को समाप्त करके अन्तिम आशीर्वादात्मक मंगल श्लोक प्रस्तुत करते हैं Jain Education International योऽनेकान्त पदं प्रवृद्धमतुलं स्वेष्टार्थसिद्धिप्रदम् । प्राप्तोऽनंतगुणोदयं निखिलविन्निःशेषतो निर्मलम् ॥ स श्रीमानखिल प्रमाणविषयो जीयाज्जनानंदनः । मिथ्यैकान्तमहान्धकाररहितः श्री वर्द्धमानोदितः || १ || अर्थ - जो अनेकान्त पद को प्राप्त है ऐसा अखिल प्रमाण का विषय जयशील होवे, कैसा है वह अनेकान्त पद ! प्रवृद्धशाली एवं अतुल है, तथा स्व - अपने की सिद्धि को देने वाला है, अनन्त गुरणों का जिसमें उदय है, पूर्णरूप से जीवों को आनन्दित करने वाला है, मिथ्या एकान्तरूप महान् अंधकार से श्री वर्द्धमान तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित है श्रीयुक्त ऐसा यह प्रमाण विषय जयवन्त वर्त्ती । पक्ष में - निखिल वित्- सर्वज्ञ देव जयशील होवे ! कैसे हैं सर्वज्ञ देव १ जो अनेकान्त पद को प्राप्त हैं, कैसा है अनेकान्त पद १ प्रवृद्ध, अतुल, स्वेष्टार्थसिद्धि का प्रदाता, अनन्त गुणों का जिसमें उदय पाया जाता है, पूर्णरूप से निर्मल है श्रीमान्श्रीयुक्त है, श्री अर्थात् अंतरंग लक्ष्मी अनंत ज्ञानादि, बहिरंग लक्ष्मी समवशरणादि से युक्त है, जगत् के जीवों को आनन्दित करने वाले हैं, संपूर्ण प्रमाणों के विषयों को जानने वाले होने से अखिल प्रमाण विषय है मिथ्या एकांतरूपी महान् अंधकार से रहित है, एवं गुण विशिष्ट सर्वज्ञ देव सदा जयवंत रहे । इति । ५१३ इति श्री प्रभाचन्द्राचार्य विरचिते प्रमेयकमलमार्त्तण्डे परीक्षामुखालंकारे चतुर्थः परिच्छेदः समाप्तः । For Private & Personal Use Only इष्ट प्रर्थ निर्मल है, रहित है, www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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