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सामान्यस्वरूपविचारः व्यावृत्तेरेवासम्भवात् । अनुगतप्रत्ययाद्वस्तुनि प्रवृत्त्यऽभावप्रसङ्गाच्च । गुडूच्यादिदृष्टान्तोपि साध्यविकल:; न खलु ज्वरोपशमनशक्तिसमानपरिणामाभावे 'गुडूच्यादयो ज्वरोपशमनहेतवः न पुनर्दचित्रपुसादयोपि' इति शक्यव्यवस्थम्, 'चक्षुरादयो वा रूपज्ञानहेतवस्तज्जननशक्तिसमानपरिणामविरहिणोपि न पुना रसादयोपि' इति निनिबन्धना व्यवस्थितिः ।
कार्य कारण भाव की व्यावृत्ति है अर्थात् अश्वादि व्यक्तियां गो आदि व्यक्तियों का न कारण है और न कार्य ही है, जिसके साथ कार्य कारण भाव होता है वही उसके प्रतीति में निमित्त कारण हुआ करता है, अतः एक प्रत्यवमर्शी ज्ञान में ( अनुगताकार ज्ञान में यह गो है, यह गो है, इस प्रकार की प्रतीति में ) गो व्यक्तियां निमित्त हुआ करती हैं, यह प्रतीति एक प्रत्यवमर्शी आदि एकार्थ साधनभूत है अर्थात् एक ही प्रकार के पदार्थ का विमर्श करने वाली तथा एक ही व्यवहार का हेतु है, गो व्यक्तियां परस्पर में अत्यन्त भिन्न होने पर भी इन्द्रियादि के समान अथवा समस्त या व्यस्त गुडची आदि औषधि के समान सामान्यपने का बोध कराने में हेतु है, अर्थात् जैसे इन्द्रिय, प्रकाश और पदार्थ ये तीनों अत्यन्त भिन्न होने पर भी एक रूप ज्ञान के प्रति हेतु हैं, तथा गुडची, सोंठ आदि औषधि ये अत्यन्त भिन्न होने पर भी एक ज्वर नाश रूप कार्य को करते हैं वैसे ही गो व्यक्तियां परस्पर में अत्यन्त भिन्न होने पर भी एक प्रत्यवमर्शी ज्ञान को उत्पन्न कराती है।
भावार्थ-जैन ने पूछा कि बौद्ध जब सदृश परिणाम या सामान्य धर्म का अस्तित्व स्वीकार नहीं करते हैं तो जैसे गो व्यक्तियों से गो में अनुगताकार प्रतिभास होता है वैसे सफेद अश्व आदि व्यक्तियों से भी होना चाहिए ? सो इसका उत्तर बौद्ध ने यह दिया कि अतद् कारण कार्य व्यावृत्ति अर्थात् सफेद अश्वादि व्यक्तियां खण्डी ग्रादि गो व्यक्तियों का कार्य और कारण रूप नहीं हैं ऐसे अतद् कार्य कारणभूत अश्वादि व्यक्तियों से गो व्यक्तियों की व्यावृत्ति है पथक्पना है यही कारण है कि उन गो व्यक्तियों द्वारा एक प्रत्यवमर्शी आदि एकार्थ साधन अर्थात् गो है, गो है इस प्रकार एकत्व का स्पर्श करने वाला अनुगत प्रत्यय हो जाता है, इस विषय का अनुमान इस तरह होवेगा कि खण्डी मुण्डी आदि गो व्यक्तियां सामान्य धर्म से रहित होकर ही अर्थात परस्पर में अत्यन्त भिन्न होकर ही एक प्रत्यवमर्शी ज्ञान का ( गोत्व प्रतिभास का ) हेतु हैं, क्योंकि इनमें अतद् कार्य कारण व्यावृत्ति पायी जाती है, जैसे चक्षु
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