________________
समवायपदार्थ विचार:
यदप्युक्तम् - समवायीनि द्रव्याणीत्यादिप्रत्ययो विशेषरणपूर्वको विशेष्य प्रत्ययत्वादित्यादि; तदप्यनल्पतमोविलसितम् ; हेतोर्विशेषणासिद्धत्वात् । तदसिद्धत्वं च समवायानुरागस्याप्रतीतेः । प्रतीतौ वानुमानानर्थक्यम् । को हि नाम समवायानुरक्त द्रव्यादिकं मन्यमानः समवायं न मन्येत ? तदनुरागाभावेपि तेनास्य विशेष्यत्वे खरशृङ्गेणापि तत्स्यादविशेषात् । ननु सम्बन्धानुरक्तं द्रव्यादिकं प्रतिभाति । सत्यं प्रतिभाति, समवाये तु किमायातम् ? न च स एव स इति वाच्यम्; तादात्म्यादपि
समवाय सिद्धि में कहा था कि "समवायीनि द्रव्याणि" द्रव्य समवायी होते हैं। इत्यादि प्रत्यय विशेषण पूर्वक होता है, क्योंकि विशेष्य प्रत्ययरूप है, इत्यादि वर्णन तो अज्ञान का विलास मात्र है । इस अनुमान का हेतु असिद्ध विशेषण वाला है, क्योंकि समवायरूप संबंध या अनुराग [ उपाधि या विशेषण ] की प्रतीति नहीं होती, अभिप्राय यह है कि " द्रव्य समवायी है" ऐसा द्रव्य का समवायीपना तब प्रतीत होता जब कि समवायरूप विशेषण सिद्ध होता, जैसे कि देवदत्त दण्डी या दण्डा वाला है ऐसा प्रत्यय दण्ड प्रतीत होने पर ही होता है, इसतरह द्रव्य समवायी - समवाय वाला है ऐसा प्रत्यय और कथन तभी शक्य होता जब समवाय का प्रतिभास होता । समवाय साक्षात् ज्ञान में प्रतीत होता है तो उसको सिद्ध करने वाला अनुमान व्यर्थ होगा । कौन ऐसा व्यक्ति है कि जो समवाय से युक्त द्रव्यादि को मानता हुआ समवाय को नहीं माने । अतः कहना होगा कि समवायरूप अनुराग की प्रतीति ही नहीं होती, अब यदि समवायरूप उपाधि के प्रभाव में भी उसे द्रव्यरूप विशेष्य का विशेषण बनायेंगे तो खर शृंग के साथ भी उसे जोड़ सकते हैं, कोई विशेषता नहीं क्योंकि जैसा खर श्रृंग अभावरूप है वैसे समवाय प्रभावरूप है ।
४७३
वैशेषिक – संबंध से अनुरक्त अर्थात् सहित ही द्रव्यादि पदार्थ प्रतिभासित हुआ करते हैं ।
जैन - सत्य है कि संबंध युक्त द्रव्यादि प्रतीत होते हैं किन्तु उससे समवाय में क्या आया ! [ समवाय कैसे सिद्ध हुम्रा ] |
वैशेषिक – संबंध युक्त द्रव्य प्रतीत होते हैं उनमें जो संबंध है वही तो समवाय कहलाता है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org