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प्रमेयकमलमार्त्तण्डे
"ननु संयोगो नामार्थान्तरं न स्यात्तदा क्षेत्रे बीजादयो निर्विशिष्टत्वात् सर्वदैवाङ कुरादिकार्यं कुर्युः, न चैवम् । तस्मात्सर्वदा कार्यानारम्भात् तेऽङ कुरादिकार्योत्पत्तौ कारणान्तरसापेक्षाः, यथा मृत्पिण्डदण्डादयो घटकरणे कुम्भकारादिसापेक्षाः । योसावपेक्ष्यः स संयोग इति ।
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किञ्च, द्रव्ययोविशेषरणभावेनाध्यक्ष एवासौ प्रतीयते; तथाहि - कश्चित्केनचित् 'संयुक्त द्रव्ये प्रहर' इत्युक्त ययोरेव द्रव्ययोः संयोगमुपलभते ते एवाहरति, न द्रव्यमात्रम् ।
ईश्वर सिद्ध करते हैं अतः इह प्रत्यय को ईश्वर कृत मानना चाहिये न कि समवाय कृत, अन्यथा कार्यत्व हेतु द्वारा ईश्वर कर्तृत्व को सिद्ध करना अशक्य होगा । और यदि इदं प्रत्यय को ईश्वर निमित्तक मानेंगे तो समवाय पदार्थ व्यर्थ ठहरता है । तथा " इह कुण्डे दधि" इत्यादि इह प्रत्यय में प्रर्थान्तरभूत संयोग संबंध कारण है ऐसा कहना भी प्रसिद्ध है, क्योंकि संयोग का स्वरूप ही सिद्ध नहीं है ।
वैशेषिक - यदि संयोग को प्रर्थान्तरभूत न माना जाय तो खेत में डाले गये गेहूँ आदि बीज निर्विशेष होने से सर्वदा अंकुरादि कार्यों को करने लगेंगे, अर्थात् - मिट्टी पानी आदि का संयोग होवे चाहे मत होवे गेहूं आदि बीज घर में हो चाहे खेत में डाले वे सतत ही अंकुरादि को उत्पन्न कर सकते हैं, क्योंकि संयोग की अपेक्षा नहीं है, किन्तु ऐसा देखा नहीं जाता, अतः सर्वदा कार्य का अनारंभ देखकर निश्चित होता है। कि गेहूं आदि बीज अंकुरादि कार्य को करने में कारणांतर जो संयोग है उसकी अपेक्षा रखते हैं - [ मिट्टी, हवा, पानी इत्यादि के संयोग की अपेक्षा रखते हैं ] जिसप्रकार मिट्टी कापड, दण्डा इत्यादि पदार्थ घट को उत्पन्न करते समय कुंभकार आदि की अपेक्षा रखते हैं, जिसकी अपेक्षा पड़ती है वही संयोग है ।
तथा दो द्रव्यों के विशेषण भाव द्वारा प्रत्यक्ष प्रमाण संयोग गुण प्रतीति में आता है, अब इसी को बतलाते हैं- किसी पुरुष ने अपने पास बैठे हुये व्यक्ति को प्रेरित किया कि संयुक्त पदार्थ ले आओ इसप्रकार कहने पर वह प्रेरित हुआ व्यक्ति जिसमें दो द्रव्यों का संयोग उपलब्ध होता है उन्हीं पदार्थों को ले श्राता है, न कि द्रव्यमात्र को इससे संयोग सिद्ध होता है ।
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