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समवायपदार्थविचारः
नापि समवायपदार्थोऽनवद्यतल्लक्षणाभावात् । ननु च "प्रयुतसिद्धानामाधार्याधारभूतानामिहेदम्प्रत्ययहेतुर्यः सम्बन्धः स समवायः।" [प्रश० भा० पृ० १४ ] इत्यनवद्यतल्लक्षणसद्भावात्तदभावोऽसिद्धः । न चान्तरालाभावेन 'इह ग्रामे वृक्षाः' इतीहेदम्प्रत्ययहेतुना व्यभिचारः; सम्बन्ध ग्रह
वैशेषिक का अभिमत समवाय नामा पदार्थ भी निर्दोष लक्षण के अभाव में सिद्ध नहीं होता है । अब यहां पर उसी का सुविस्तृत पूर्व पक्ष रखा जाता है
वैशेषिक- "अयुत सिद्धाना माधार्याधारभूतानामिहेदंप्रत्यय हेतुर्यः सम्बन्धः स समवायः" आधार और आधेयभूत अयुत सिद्ध पदार्थों में "यहां पर यह है" इस प्रकार के ज्ञान को कराने में जो सम्बन्ध निमित्त होता है वह समवाय कहलाता है, इसप्रकार समवाय पदार्थ का निर्दोष लक्षण पाया जाता है अतः उसका अभाव नहीं कर सकते, अंतराल का अभाव होने से “यहां पर ग्राम में वृक्ष हैं" इत्यादि स्थान पर भी इहेदं प्रत्यय हेतु देखा जाता है अतः समवाय का लक्षण व्यभिचरित है ऐसा नहीं कहना, क्योंकि सम्बन्ध शब्द का ग्रहण किया है । अर्थात् जहां पर इहेदं प्रत्यय हो वहां समवाय है ऐसा लक्षण करते तो दोष आता, किन्तु इहेदं प्रत्यय के साथ सम्बन्ध शब्द जोड़ा है अतः अंतराल के अभावरूप से [ निरन्तररूप से ] यहां ग्राम में वृक्ष हैं "इस तरह कहने में जो इहेदं प्रत्यय हुअा है उसमें सम्बन्ध नहीं है अतः उससे समवाय का
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