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विशेषपदार्थविचारः किञ्च, अतदात्मकेष्वप्यन्यनिमित्तः प्रत्ययो भवत्येव, यथा प्रदीपात्पटादिषु, न पुन : पटादिभ्यः प्रदीपे, एवं विशेषेभ्य एवाण्वादो विशिष्टः प्रत्ययो नाण्वादिभ्यस्तत्र; इत्यप्यसमोचीनम् ; यतोऽमेध्याद्यशुचिद्रव्यसंसर्गान्मोदकादयो भावा प्रच्युतप्राक्तनशुचिस्वभावा अन्ये एवाऽशुचिरूपतयोत्पद्यन्ते इति युक्तमेषामन्यसंसर्गादशुचित्वम् । न चाण्वादिष्वेतत्सम्भवति, तेषां नित्यत्वादेव प्राक्तनाविविक्तरूपपरित्यागेनापरविविक्तरूपतयानुपप(नुत्प)त्तेः । प्रदीपदृष्टान्तोप्यत एवासङ्गतः; पटादीनां प्रदीपादिपदार्थान्तरोपाधिकस्य रूपान्तरस्योत्पत्तेः, प्रकृते च तदसम्भवात् ।
अनुमानबाधितश्च विशेषसद्भावाभ्युपगमः; तथाहि-विवादाधिकरणेषु भावेषु विलक्षणप्रत्य
विशेषों में स्वतः व्यावृत्तबुद्धि का हेतुपना होता है और परमाणु आदि में तो व्यावृत्त बुद्धि का हेतुपना विशेषपदार्थ से होता है । दूसरी बात यह है कि जो वस्तु अतदात्मक होती है उनमें अन्य निमित्त से प्रतिभास होता ही है यथा पट आदि पदार्थों में दीपक के निमित्त से प्रतिभास होता है, किन्तु ऐसा तो नहीं होता कि पटादिनिमित्त से दीपक में प्रतिभास होवे । इसीप्रकार की बात विशेषों में है अर्थात् अणु आदि में विशिष्ट प्रतिभास तो विशेषनामा पदार्थ के कारण होता है किन्तु विशेषों में अणु आदि से विशिष्ट प्रत्यय नहीं होता, स्वतः ही होता है ।
जैन-यह कथन अयुक्त है, आपने अमेध्य मल आदि का दृष्टान्त दिया उसकी बात यह है कि अमेध्य आदि अशुचि द्रव्य के संसर्ग हो जाने से मोदकादिपदार्थ अपने पहले के शुचि-पवित्र स्वभाव को छोड़कर अशुचिरूप से अन्य ही उत्पन्न होते हैं अतः इन पदार्थों का अशुचिपना अन्य के संसर्ग से होना युक्ति संगत है, किन्तु परमाणु आदि में ऐसी बात नहीं है, क्योंकि परमाणु आदि द्रव्य नित्य हैं वे अपनी पहले की अविविक्तरूप अवस्था को छोड़कर दूसरी विविक्तरूप अवस्था से उत्पन्न हो नहीं सकते, दीपक का दृष्टान्त भी इसीलिये असंगत होता है, पट आदि पदार्थ का दीपकादि अन्य पदार्थ की उपाधि से रूपांतर हो जाता है अर्थात् दीपक के निमित्त से पटादि प्रकाश रूप हो जाते हैं, ऐसा होना परमाणुओं में सम्भव नहीं क्योंकि वे नित्य हैं उनमें रूपांतर हो नहीं सकता।
आपका विशेष पदार्थ का मानना अनुमान प्रमाण से बाधित भी होता है, अब उसी अनुमान प्रमाण को उपस्थित करते हैं-विवाद में स्थित परमाणु आदि पदार्थों
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