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श्रीमाणिक्यनन्द्याचार्यविरचित - परीक्षामुखसूत्रस्य व्याख्यारूप: श्रीप्रभाचन्द्राचार्यविरचितः
प्रमेयकमलमात 'ण्डः
[ तृतीय भागः ] अथ चतुर्थः परिच्छेदः
अथोक्तप्रकारं प्रमाणं किं निर्विषयम्, सविषयं वा ? यदि निर्विषयम् ; कथं प्रमाणं केशोण्डुकादिज्ञानवत् ? अथ सविषयम्; कोस्य विषयः ? इत्याशङ्कय विषयविप्रतिपत्तिनिराकरणार्थं
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श्री माणिक्यनन्दी प्राचार्य ने परीक्षामुख नामा संस्कृत सूत्रबद्ध ग्रन्थ रचा था, इस सूत्र ग्रन्थ की सुविस्तृत संस्कृत टीका प्रभाचन्द्राचार्य ने की इस टीका ग्रन्थ का नाम ही प्रस्तुत प्रमेयकमलमार्त्तण्ड है, इस ग्रन्थ के हिन्दी देश भाषामय अनुवाद सामान्य जनता को न्याय विषयक ज्ञान प्राप्त हो इस उद्देश्य से किया है; मूल ग्रन्थ विशाल होने के कारण अनुवाद भी विशाल हुआ अतः इस ग्रन्थ को तीन खण्डों में विभक्त किया । प्रथम खण्ड में सांव्यावहारिक प्रत्यक्ष प्रमाण के लक्षण स्वरूप द्वितीय अध्याय के पांचवें सूत्र तक अंश प्राया है जिसमें प्रथम अध्याय के १३ और द्वितीय अध्याय के ५ कुल १८ सूत्र हैं और संस्कृत टीका २३० पृष्ठों की है । दूसरे खंड में द्वितीयाध्याय के अवशेष ७ सूत्र एवं तृतीयाध्याय के संपूर्ण १०१ सूत्र हैं एवं संस्कृत टीका २३६
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