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प्रमेयकमलमार्त्तण्डे
हर्षविषादादिविवर्तात्मको द्वीपान्तरवर्तिद्रव्यैवियुक्तमेवात्मानं स्वसंवेदन प्रत्यक्षतः प्रतिपद्यते इति प्रत्यक्ष बाधित कर्म निर्देशानन्तरप्रयुक्तत्वेन कालात्ययापदिष्टो हेतुः । तद्वियुक्तत्वेनाऽतस्तत्प्रतीतावप्यात्मनस्तद्रव्यैः संयोगाभ्युपगमे पटादीनां मेर्वादिभिस्तेषां वा पटादिभिः संयोगः किन्नेष्यते यतः साङ्ख्यदर्शनं न स्यात् ? प्रमाणबाधनमुभयत्र समानम् ।
किञ्च, धर्माधर्मयोद्रव्यान्तरसंयोगस्य चात्मैक आश्रयः, स च भवन्मते निरंश: । तथा च धर्माधर्माभ्यां सर्वात्मनास्यालिङ्गिततनुत्वान्न तत्संयोगस्य तत्रावकाशस्तेन वा न तयोरिति । अथ
समाधान —- इस विषय में भी कह चुके हैं, अर्थात् — जो जिसको निर्माण करता है वही उसी में ही क्रिया का हेतु होता है ऐसा कहना शरीर के आरम्भक परमाणुओं से व्यभिचरित - बाधित होता है, क्योंकि शरीर के आरम्भक परमाणु प्रदृष्ट से निर्मित नहीं हैं फिर भी अदृष्ट द्वारा आकर्षित होते हैं । तथा दूसरी बात यह है कि अदृष्ट का प्राश्रय आत्मा है और वह आत्मा हर्ष-विषाद आदि पर्याय युक्त है, ऐसा आत्मा द्वीप द्वीपांतरवर्ती पदार्थों से पृथक् रूप अपने ग्रापको स्वसंवेदन प्रत्यक्ष द्वारा अनुभव में आता है, अतः ग्रात्मा को सर्वत्र व्यापक मानना प्रत्यक्ष बाधित है ऐसे प्रत्यक्ष बाधित पक्ष को जो सिद्ध करता है वह हेतु कालात्ययापदिष्ट कहलाता है । द्वीपांतरवर्ती पदार्थों से प्रात्मा पृथक् रूप से प्रतीत होता है तो भी उसका उन द्रव्यों के साथ संयोग है ऐसा माने तो वस्त्र, गृह, चटाई आदि पदार्थों का मेरु आदि के साथ संयोग होना या मेरुकुलाचल, नदी प्रादि के साथ उन वस्त्रादिका संयोग होना भी क्यों न माना जाय ? क्योंकि पृथक् पदार्थों का भी संयोग मान लिया । और इसतरह सब जगह सब पदार्थ हैं, सब जगह आत्मा है इत्यादि माने तो सांख्य मत कैसे नहीं आवेगा ? प्रमाण बाधा उभयत्र समान है अर्थात् जैसे पट आदि पदार्थों का मेरु आदि के साथ संयोग मानने में प्रमाण से बाधा आती है वैसे द्वीपांतरवर्त्ती पदार्थों के साथ श्रात्मा का संयोग मानने में प्रमाण से बाधा आती है ।
किञ्च, धर्म और अधर्म का एवं द्वीपांतरस्थ द्रव्य संयोग का आश्रय एक आत्मा है और आत्मा आपके मत में निरंश है, सो निरंश आत्मा में धर्मादिका और द्रव्य संयोग का आश्रितपना कैसे बन सकता है, यदि धर्म अधर्म द्वारा सब तरफ से श्रात्मा व्याप्त होगा तो उसमें द्रव्य संयोग का अवकाश नहीं हो सकेगा और यदि द्रव्य
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