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________________ ( ३० ) विषय ५०५ प्रमाण और अज्ञान निवृत्तिरूप उसके फल में कथंचित् प्रभेद मानने पर भी कार्य कारण भाव विरुद्ध नहीं जो प्रमाता जानता वही प्रज्ञान रहित होता है इत्यादि सूत्र एवं अर्थ प्रमाण और फल में अत्यन्त प्रभेद भी नहीं ५१० १६ तदाभास स्वरूप विचार ( पंचम परिच्छेद ) : ५१४ से ५६६ सूत्र १ से ७२ तक ५१५ से ५६६ २० जय पराजय व्यवस्था : ५७० से ६५५ वाद के चार अंग ५७० वाद का स्वरूप ५७०-५७१ योग का वाद के विषय में पक्ष ५७२ तत्त्वाध्यवसाय रक्षण छल आदि द्वारा होना अशक्य है ५७५ पक्ष प्रतिपक्ष का लक्षण ५७७ प्रतिवादी का मुख बंद करने से तत्त्व संरक्षण नहीं होता ५८० छल के तीन भेद ५८२ जाति के चौबीस भेद ५८८ इस असत् उत्तर स्वरूप जाति का वर्णन ५८८-६१८ निग्रह स्थानों द्वारा भी जय पराजय की व्यवस्था संभव नहीं निग्रह स्थान का सामान्य लक्षण ६१६ निग्रह स्थानों के बाईस भेदों का वर्णन एवं वाद में उनकी अनुपयुक्तता ६१६-६४० बौद्ध के द्वारा माने गये निग्रह स्थानों का वर्णन ६४०-६५० पंचम परिच्छेद पूर्ण ६५२ जय पराजय व्यवस्था का सारांश ६५३-६५५ २१ षष्ठ परिच्छेदः नय विवेचनम् : ६५६ से ६८१ नय विवेचन सूत्र ६५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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