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________________ ११ दिग्द्रव्यवादः 11 नापि दिग्द्रव्यम्; तत्सद्भावे प्रमाणाभावात् । यच्च दिश: सद्भावे प्रमाणमुक्तम् - "मूर्तेष्वेव द्रव्येषु मूर्त्तद्रव्यमवधिं कृत्वेदमतः पूर्वेण दक्षिणेन पश्चिमेनोत्तरेण पूर्वदक्षिणेन दक्षिणापरेणाऽपरोत्तरेणोत्तरपूर्वेणाधस्तादुपरिष्टादित्यमी दश प्रत्यया यतो भवन्ति सा दिग्” [ प्रश० भा० पृ० ६६ ] इति । तथा च सूत्रम् - "प्रत इदमति यतस्तद्दशा लिङ्गम् " [ वैशे० सू० २।२।१० तथा च दिग्द्रव्य वैशेषिक द्वारा परिकल्पित दिशा नामा द्रव्य भी सिद्ध नहीं होता है । दिशा वास्तविक पदार्थ है इस बात को बतलाने वाला प्रमाण नहीं है । वैशेषिक दिशाद्रव्य IT प्रस्तित्व बतलाने के लिए निम्नलिखित प्रमाण उपस्थित कर अपना पूर्व पक्ष रखते हैं । Jain Education International वैशेषिक – दिशाद्रव्य की सिद्धि हमारे ग्रन्थ से हो जाती है "मूर्तेष्वेव द्रव्येषु मूर्त्तद्रव्यमवधिं कृत्वेदमतः पूर्वेण दक्षिणेन पश्चिमेनोत्तरेण, पूर्व दक्षिणेन, दक्षिणापरेण, अपरोत्तरेण, उत्तरपूर्वेण, प्रधस्तात्, उपरिष्टात् इति अमी दश प्रत्यया यतो भवंति सा दिग्" [ प्रशस्त भाष्य पृ. ६६ ] तथा च सूत्रं - " अतः इदं इति यतः तद दिशो लिंगं" केवल मूत्र्तिक द्रव्यों में मूर्त्तद्रव्य की अवधि करके " यह इसके पूर्व में है" ऐसा ज्ञान For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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