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________________ ३०० प्रमेयकमलमार्त्तण्डे कुतस्तर्हि तत्सिद्धिरिति चेद् ? 'युगपन्निखिलद्रव्यावगाहकार्यात्' इति ब्रूमः; तथाहि - युगपन्निखिलद्रव्यावगाहः साधारणकारणापेक्षः तथावगाहत्वान्यथाऽनुपपत्तेः । ननु सर्पिषो मधुन्यवगाहो भस्मनि जलस्य जलेऽश्वादेर्यथा तथैवालोकतमसोरशेषार्थावगाहघटनान्नाकाशप्रसिद्धिः; तन्न ; अनयोरप्याकाशाभावेऽवगाहानुपपत्तेः । क्योंकि सामान्य क्रियावान नहीं है इस तरह सब प्रकार के दोषों से रहित उक्त हेतु स्वसाध्य का साधक होता है । शब्द के विषय में पहले हमने " ग्रस्मदादि प्रत्यक्षत्वे सति स्पर्शवत्वात्” हमारे प्रत्यक्ष होकर स्पर्शवाला होने से शब्द ग्रमूर्त्त नहीं है, इत्यादि रूप से हेतु कहे थे वे सभी हेतु शब्द को पौद्गलिक सिद्ध करने वाले हैं । इन सब तुओं से जब शब्द का पुद्गल द्रव्यपना सिद्ध होता है तो उसका प्रकाश द्रव्य का गुण होना अपने आप असिद्ध हो जाता है अतः शब्द प्रकाश का लिंग [ श्राकाश को सिद्ध करने वाला हेतु ] नहीं है, ऐसा निश्चित होता है । शंका- फिर आकाश द्रव्य को सिद्ध करने वाला कौनसा लिंग [ हेतु ] हो सकता है ? समाधान - प्राकाश को सिद्ध करने वाला तो अवगाह गुण है, जो एक साथ संपूर्ण द्रव्यों को अवकाश देवे वह आकाश द्रव्य है, ग्रवगाह रूप कार्य देखकर मूर्त प्रकाश की सिद्धि होती है। इसी का खुलासा करते हैं- संपूर्ण द्रव्यों का एक साथ जो अवगाह [अवस्थान] देखा जाता है वह कोई साधारण कारण की अपेक्षा लेकर होना चाहिए, क्योंकि साधारण कारण के बिना इस तरह की श्रवगाहना होना असंभव है । शंका- जिस प्रकार मधु [ शहद ] में घी का अवगाह होता है अर्थात् मधु में घी समा जाता है जितनी जगह में मधु हो उतने ही पात्र में डाला हुआ घी समाता है, तथा राख में जल समाता है, जलाशय में अश्वादि समाते हैं, इसी प्रकार प्रकाश और अन्धकार में सम्पूर्ण पदार्थों का अवगाह हो जाता है, अतः अवगाह हेतु से प्राकाशद्रव्य की सिद्धि नहीं होती । अर्थात् अवगाह कार्य को प्रकाशादि ही कर लेते हैं उसके लिये आकाश को मानने की आवश्यकता नहीं है ? समाधान - यह शंका असत् है, प्रकाश तथा अन्धकार का अवगाह भी प्रकाश के बिना नहीं हो सकता है, अर्थात् आकाश न होवे तो प्रकाश आदि का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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