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प्रमेयकमलमार्तण्डे यच्चोक्तम्-शब्दो द्रव्यं न भवत्येकद्रव्यत्वात् तत्रैकद्रव्यत्वं साधनमसिद्धम् । यतो गुणत्वे, गगने एवैकद्रव्ये समवायेन वर्तने च सिद्ध', तत्सिद्धयेत्, तच्चोक्तया रीत्याऽपास्तमिति कथं तत्सिद्धिः?
यदप्येकद्रव्यत्वे साधनमुक्तम्-'एकद्रव्यः शब्दः सामान्यविशेषवत्त्वे सति बाह्य केन्द्रियप्रत्यक्षस्वात्' इति; तदपि प्रत्यनुमानबाधितम्; तथाहि-अनेकद्रव्यः शब्दोऽस्मदादिप्रत्यक्षत्वे सत्यपि स्पर्शवत्त्वाद् घटादिवत् । वायुनानेकान्तश्च ; स हि बाह्य केन्द्रियप्रत्यक्षोपि नैकद्रव्यः, चक्षुषैकेनाऽ
या सत्तापना पृथक् रहता है और समवाय से सम्बन्धित होता है ऐसा कहना सर्वथा गलत है इस विषय में पहले भी कथन कर आये हैं और आगे समवाय विचार प्रकरण में पूर्ण रूप से खण्डन करने वाले हैं, अतः यहां अधिक नहीं कहते हैं ।
शब्द द्रव्य नहीं है, क्योंकि उसमें एक द्रव्यपना है ऐसा वैशेषिक ने कहा था सो एकद्रव्यत्वात् हेतु असिद्ध है, पहले शब्द में गुणपना सिद्ध होवे और वह शब्द रूप गुण मात्र आकाश में ही समवाय से रहता है ऐसा सिद्ध होवे तब यह सिद्ध हो सकता है कि शब्द एक द्रव्यपने से युक्त होने के कारण द्रव्य नहीं कहलाता। किन्तु शब्द में गुणपना कथमपि सिद्ध नहीं हो रहा है फिर किस प्रकार एक द्रव्यत्व सिद्ध होवे ? अर्थात् नहीं हो सकता है ।
एक द्रव्यः शब्दः सामान्य विशेषवत्वे सति बाह्य-एक-इन्द्रिय प्रत्यक्षत्वात्, एक द्रव्य में रहने वाला शब्द है, क्योंकि वह सामान्य विशेषवान होकर बाह्य के एक मात्र इन्द्रिय से प्रत्यक्ष होता है ऐसा कहा था वह अनुमान प्रतिपक्षी अनुमान से बाधित है, अब इसीको बताते हैं - अनेक द्रव्यः शब्दः, अस्मदादि प्रत्यक्षत्वे सत्यपि स्पर्शवत्वात् घटादिवत्, शब्द अनेक द्रव्य स्वरूप है, क्योंकि हमारे प्रत्यक्ष होकर भी स्पर्श गुणवाला है, जैसे घटादि पदार्थ स्पर्शादिमान होकर हमारे प्रत्यक्ष हुमा करते हैं। इस तरह वैशेषिक का शब्द को एक द्रव्यत्व सिद्ध करने वाला अनुमान इस अनुमान से बाधित होता है, क्योंकि इसने शब्द का एक द्रव्यत्व खण्डित किया है। तथा जो बाह्य एक इन्द्रिय प्रत्यक्ष हो वह एक द्रव्य रूप ही हो ऐसा कहना वायु से व्यभिचरित होता है, वायु बाह्य एक इन्द्रिय प्रत्यक्ष तो है किन्तु एक द्रव्य रूप नहीं है । चन्द्र, सूर्य आदि के साथ भी बाह्य केन्द्रिय प्रत्यक्षत्वात् हेतु अनैकान्तिक होता है, वे चन्द्रादिक बाह्य एक चक्षु इन्द्रिय द्वारा प्रत्यक्ष होकर भी एक द्रव्य रूप नहीं है । फिर एक द्रव्यपना और बाह्य केन्द्रिय प्रत्यक्षपना इन दोनों का अविनाभाव कैसे कर सकते हैं ? अर्थात् नहीं
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