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परमाणुरूपनित्यद्रव्यविचारः
२२५ अतिशयान्तरकल्पने च अनवस्था-तदुत्पत्तावप्यपरातिशयान्तरपरिकल्पनात् । ततस्तेषामसंयोगरूपतापरित्यागेन संयोगरूपतया परिणतिरभ्युपगन्तव्या इति सिद्ध तेषां कथञ्चिदनित्यत्वम् । अन्याश्रितत्वेपि पूर्वोक्तदोषप्रसंगः । अनाश्रितत्वे तु निर्हेतुकोत्पत्तिप्रसक्तेः सदा सत्त्वप्रसङ्गतः कार्यस्यापि सर्वदा भावानुषङ्गः। कथं चासौ गुणः स्यादनाश्रितत्वादाकाशादिवत् ?
किञ्च, असौ संयोग : सर्वात्मना, एकदेशेन वा तेषां स्यात् ? सर्वात्मना चेत् ; पिण्डोणुमात्र: स्यात् । एकदेशेन चेत् ; सांशत्वप्रसंगोऽमीषाम् । तदेवं संयोगस्य विचार्य माणस्यायोगात्कथमसौ तेषामतिशय : स्यात् ? निरतिशयानां च कार्यजनकत्वे तु सकृन्निखिलकार्याणामुत्पादः स्यात् । न
हमेशा कार्योत्पत्ति होने लगेगी यदि परमाणुत्रों के संयोग होने रूप अतिशय या कारण के लिये अन्य अतिशय की आवश्यकता है तब तो अनवस्था स्पष्ट दिखायी दे रही, क्योंकि उस अतिशयान्तर के लिए अन्य अतिशय चाहिए, इत्यादि । इस तरह परमाणुओं का संयोग रूप अतिशय या उस संयोग का आश्रय ये सिद्ध नहीं होते हैं अत: असंयोगरूप जो परमाणुओं की अवस्था थी उसका परित्याग करके संयोगरूप परिणति होती है ऐसा मानना चाहिए, इसप्रकार परमाणु कथंचित् अनित्य है यह सिद्ध हो जाता है । द्वि अणुक आदि का निष्पादक संयोग परमाणु से अन्य किसी वस्तु के आश्रित है ऐसा कहो तो वही पूर्वोक्त दोष [समवाय के आश्रित है इत्यादि] आता है। इस संयोग को प्रनाश्रित माने तो निर्हेतुक उत्पत्ति होने से संयोग सदा विद्यमान रहेगा, और जब संयोग सतत् है तो कार्य भी सतत् बिना रुकावट के होता रहेगा ! यह बात भी विचारणीय रह जायगी कि संयोग को आपने गुण माना है वह अनाश्रित कैसे रह सकता है जो अनाश्रित है वह गुण नहीं होता, जैसे आकाशादि अनाश्रित होने से गुण नहीं है।
परमाणुओं का संयोग द्वि अणुक आदि का निष्पादक है ऐसा मान भी लेवे तो पुनः शंका होती है कि यह संयोग सर्वात्मना होता है अथवा एक देश से होता है ? सर्वात्मना [सब देश से] होगा तो दोनों परमाणुओं का पिण्ड भो परमाणु मात्र रह जायगा। तथा एक देश से संयोग होना बतायो तो उन परमाणुगों में सांशत्व सिद्ध होता है। इस प्रकार संयोग के विषय में विचार करे तो वह सिद्ध नहीं होता, फिर किस प्रकार वह परमाणुओं का अतिशय [ या कारण ] कहलायेगा ? यदि बिना अतिशय हुए परमाणु कार्यों के निष्पादक माने जाते हैं तो एक बार में ही सारे कि
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