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________________ संबंधसभाववाद का सारांश पूर्वपक्ष:-बौद्ध किसी वस्तु का किसी के साथ सम्बन्ध नहीं मानते हैं, अतः उनके यहां अवयवी, स्कन्ध, स्थूलत्व इत्यादि स्वभाव का निषेध किया जाता है । उनका कहना है कि पदार्थों में परतन्त्र स्वरूप या रूपश्लेष स्वरूप कोई भी सम्बन्ध प्रतोति नहीं होता है क्योंकि परतन्त्र स्वरूप संबंध माने तो वह दो पदार्थों में निष्पन्न होने के बाद होगा या बिना निष्पन्न हुए यह प्रश्न है, निष्पन्नों का सम्बन्ध कहो तो वे बन चुके अब संबंध से क्या प्रयोजन और अनिष्पन्न असत् में सम्बन्ध हो नहीं सकता। रूपश्लेष सम्बन्ध माने तो वह भी एकदेश से होगा या सर्वदेश से, यदि एकदेश से एक अणु में अन्य अणु का सम्बन्ध माना जाय तो वे सम्बन्धित होने वाले अन्य परमाणु उस एक अणु से पृथक् रहेंगे या अपृथक् ? पृथक् माने तो सम्बन्ध ही नहीं रहा और अपृथक् कहो तो सब परमाणु मिलकर एक अणुमात्र रह जायेंगे। तथा संबंध, संबंधीभूत दो वस्तुओं से भिन्न है या अभिन्न ? यदि भिन्न है तो संबंध एक है उसका दो के साथ कौनसा सम्बन्ध बनेगा वह भी बड़ा कठिन प्रश्न है। कार्य कारण भाव असहभावी है अतः उन में होनेवाला सम्बन्ध कैसे बने । जैसे कार्य कारणादि सम्बन्ध सिद्ध नहीं होता वैसे योगाभिमत संयोग, समवायादि सम्बन्ध भी सिद्ध नहीं होते उस पक्ष में भी उपयुक्त प्रश्न उठते हैं । संबंधवादी यह बता देवें कि कार्य कारण भाव प्रत्यक्ष से ग्रहण होता है या अनुमान से ? प्रत्यक्ष से ग्रहण नहीं हो सकता। क्योंकि दोनों वर्तमान काल में एक साथ नहीं रहते । अनुमान से कहो तो उसको हेतु चाहिए। कारण होनेपर कार्य होता है, कारण नहीं होनेपर कार्य नहीं होता ऐसा देखकर कार्य कारण भाव सिद्ध करो तो वक्तृत्वादि हेतु में भी ऐसा अन्वय व्यतिरेक पाया जाने से उस हेतु से सर्वज्ञ का अभाव स्वीकार करना होगा अर्थात् जहां वक्तृत्व है वहां असर्वज्ञत्व है और जहां असर्वज्ञत्व नहीं वहां वक्तृत्व नहीं ऐसा अन्वय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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