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संबंधसद्भाववाद:
स्यादेव कुम्भकारकार्यता । तत्तु निश्चेतुमशक्यम् ।
न च भिन्नार्थग्राहि प्रत्यक्षद्वयं द्वितीयाग्रहणे तदपेक्षं कारणत्वं कार्यत्वं वा ग्रहीतुमसमर्थमित्यभिघातव्यम्; क्षयोपशमविशेषवतां धूममात्रोपलम्भेप्यभ्यासवशाद्वह्निजन्यत्वावगमप्रतीतेः, अन्यथा बाष्पादिवैलक्षण्येनास्याऽनवधारणात्ततोग्रघनुमाभावे सकलव्यवहारोच्छेदप्रसङ्गः । ततः कारणाभिमतपदार्थग्रहणपरिणामापरित्यागवतात्मना कार्यस्वरूपप्रतीतिरभ्युपगन्तव्या नीलाद्याकारव्याप्येकज्ञाने
तत्स्वरूपवत् ।
ननु नालिकेरद्वीपादिवासिनामकस्माद्भूमस्याग्नेर्वोपलम्भेपि कार्यकारणभावस्यानिश्चयान्नासो
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कारण भाव को व्यभिचरित करना अशक्य है ।
शंका - धूम और अग्नि आदि भिन्न भिन्न पदार्थ हैं, उनको ग्रहण करनेवाले प्रत्यक्ष भी दो हैं, उनमें से एक को ग्रहण करनेवाला प्रत्यक्ष दूसरे को ग्रहण नहीं करता फिर उन पदार्थों की अपेक्षा लेकर होनेवाला जो कारणपना या कार्यपना है उसको कौन जानेगा उसको जानने के लिए तो दोनों ही प्रत्यक्ष असमर्थ ही रहेंगे ?
समाधान- - इसतरह नहीं कहना, जिन पुरुषोंके ज्ञानावरण का विशेष क्षयोपशम हुआ है उनको अकेले धूम को देखने मात्र से भी अभ्यास के कारण "यह धूम अग्नि से पैदा हुआ है" ऐसा ज्ञान हो जाता है, यदि इसप्रकार नहीं माना जाय तो उस व्यक्ति को बाफ से धूम विलक्षण ( पृथक् ) होता है इसतरह का धूम और बाफ में भेद मालूम नहीं पड़ता, फिर तो धूम को देखकर अग्नि का अनुमान नहीं हो पायेगा और इसतरह सम्पूर्ण लोक व्यवहार ही समाप्त हो जाने का प्रसंग आता है । इन दोषों को दूर करने के लिए कारणरूप से माना गया पदार्थ जिसने पहले जाना है तथा उस संस्कार को जिसने नहीं छोड़ा है ऐसे आत्मा द्वारा कार्य स्वरूप का प्रतिबोध होता है ऐसा स्वीकारना चाहिये, जैसे कि नील, पीत आदि ग्राकारों में व्यापक ऐसा एक ही ज्ञान होते हुए भी उसमें अनेक नील आदि के स्वरूप प्रतीत होते है ।
शंका- जो पुरुष नालिकेर नामा द्वीप में afe को अथवा धूम मात्र को देखते हैं उनको तो कारणभाव निश्चित नहीं होता है, अतः मालूम
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निवास करते हैं, वे यहां प्रानेपर, उन अग्नि आदि में होनेवाला कार्य पड़ता है कि कार्य कारण संबंध
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