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________________ १४६ प्रमेयकमलमार्तण्डे स्वप्नावस्थायामन्यत्र गतचित्तस्य वा शब्दविवक्षाभावेपि वक्तृत्वसंवेदनात् । न च व्यवहिता सा तन्निमित्तमिति वक्तव्यम् ; प्रतिनियत कार्यकारणभावाभावप्रसंगात्, सर्वस्य तत्प्राप्तेः । अथ 'असर्वज्ञत्वाद्यभावे सर्वत्र वक्तृत्वं न सम्भवति' इत्यत्र प्रमाणाभावान्न तस्य तेन कार्यकारणभावलक्षण : प्रतिबन्धः सिद्धयति; तदग्निधूमादावपि समानम् । अथ 'अग्न्यभावे धूमस्य भावे तद्ध तुकताविरहात्सकृदप्यहेतोरग्नेस्तस्य भावो न स्यात्, दृश्यते च महानसादावग्नितः, ततो नानग्ने— मसद्भाव:' इति होता है कि विवक्षा वक्तृत्वका निमित्त नहीं है । प्रश्न--अर्थ विवक्षा में भले ही व्यभिचार हो किन्तु शब्द विवक्षा में व्यभिचार नहीं है अर्थात् कहना चाहा कुछ और निकल गया कुछ किन्तु इच्छा तो थी हो, बिना इच्छा के वक्तृत्व कहां हुग्रा । उत्तर--ऐसा कहना भी नहीं जमता, देखिये - कोई स्वप्न अवस्था में है अथवा उसका कहीं अन्यत्र मन गया है तब उस व्यक्ति के कोई भी विवक्षा नहीं होती किन्तु वक्तृत्व तो देखा जाता है । तुम कहो कि पहले जाग्रत आदि अवस्था की विवक्षा उस स्वप्नावस्था आदि में निमित्त पड़ जायगी सो भी ठीक नहीं है, इसतरह के व्यवहित विवक्षा को भी निमित्त माना जाय तो प्रतिनियत कार्य कारणभाव ही समाप्त होवेगा क्योंकि हर किसी व्यवहित कारण से हर कोई व्यवहित कार्य होवेगा, सब कार्य के लिए व्यवहित कारण निमित्त पड़ने लग जायेंगे। शंका-सभी पुरुषों में रागादिक तथा प्रसर्वज्ञ के अभाव होने पर वक्तृत्व नहीं होता है, अर्थात् सभी पुरुष रागादिमान होकर ही वक्तृत्व युक्त होते हैं ऐसा जानने के लिए कोई प्रमाणभूत ज्ञान नहीं है, अतः असर्वज्ञत्वादि के साथ वक्तत्व का कार्य कारणभाव रूप अविनाभाव सिद्ध नहीं हो पाता है । समाधान-सो यही बात अग्नि और धूम में भी लागु होगी अर्थात सब जगह धूम और अग्नि में कार्य कारण संबंध है ऐसा जानने के लिए कोई प्रमाण नहीं है अतः उनमें भी अविनाभाव सिद्ध नहीं हो सकेगा। शंका-यदि अग्नि के अभाव में धूम का सद्भाव होता है तो धूम अग्नि हेतुक सिद्ध नहीं होने से एक बार भी अग्नि धूम का हेतु नहीं बन सकेगी, किन्तु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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