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________________ ६३८ प्रमेयकमलमार्तण्डे स्मृतिप्रामाण्यवाद-स्मरण ज्ञान को इस प्रकरण में प्रमाणभूत सिद्ध किया है। समारोप व्यवच्छेदक-संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय को समारोप कहते हैं इनको दूर करने __ वाले प्रमाण को समारोप व्यवच्छेदक कहते हैं। संज्ञा संज्ञि सम्बन्ध-नाम और नाम वाले पदार्थ के सम्बन्ध को संज्ञा संज्ञि सम्बन्ध कहते हैं। सकृत-एक बार, सपक्ष- पक्ष के समान साध्य धर्म जिसमें रहे उसको सपक्ष कहते हैं। सदसद् वर्ग-सद् वर्ग-सद्भाव रूप पदार्थों का समूह, असद् वर्ग-प्रभाव रूप पदार्थों का समूह ___इन दोनों को सदसद् वर्ग कहते हैं। सकल व्याप्ति--पक्ष और सपक्ष दोनों में हेतु की व्याप्ति रहना सकल व्याप्ति कहलाती है। सात्मकम् -आत्मा सहित शरीर को सात्मक कहते हैं । सम्प्रदाय विच्छेद-परम्परा का विच्छेद-नष्ट होना। सहज योग्यता-स्वभाव से होने वाली योग्यता को सहज योग्यता कहते हैं। स्फोट वाद-गो, घट आदि शब्द द्वारा तद् वाच्य पदार्थ का ज्ञान नहीं होता किन्तु निरवयव एक व्यापक स्फोट नामा अमूर्त वस्तु द्वारा गो आदि पदार्थों का ज्ञान होता है, व्यंजकध्वनि आदि से उस स्फोट की अभिव्यक्ति होती है और उससे अर्थ बोध होता है ऐसा भर्तृहरि आदि वैयाकरणों का पक्ष है उसका इस प्रकरण में खंडन किया है। संवेदन प्रभव संस्कार-ज्ञान से उत्पन्न होने वाला संस्कार । सर्वाक्षेप-पूर्ण रूप से स्वीकार । संकलन-जोड़ सुविवेचित... भली प्रकार से विचार में लाया गया। स्वरूप परिपोष-स्वरूप को पुष्ट करना। सिद्ध साध्यता-जो प्रसिद्ध है उसको साध्य बनाना सिद्ध साध्यता नामका दोष है। सारूप्य-बौद्ध ग्रन्थ में सदृश या समानाकार को सारूप्य नाम से कहा जाता है। (ह) हेतु -“साध्याविनाभावित्वेन निश्चितो हेतुः” साध्य के साथ जिसका अविनाभाव सम्बन्ध है उसे हेतु कहते हैं। कारण को या निमित्त को भी हेतु कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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