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________________ ६३६ प्रमेयकमलमार्त्तण्डै विकल्प ज्ञान - यह घट है इत्यादि साकार ज्ञान को विकल्प ज्ञान कहते हैं । विपक्ष - जहां साध्य नहीं रहता उस स्थान को विपक्ष कहते हैं, प्रतिपक्ष को भी विपक्ष कहते हैं । वादी प्रतिवादी - वाद विवाद में जो पुरुष पहले अपना पक्ष उपस्थित करता है उसे वादी और उसके विरुद्ध पक्ष रखने वाला प्रतिवादी कहलाता है । विकल्पसिद्धधर्मी - जो धर्मी अर्थात् पक्ष प्रत्यक्ष से सिद्ध न हो उसे विकल्पसिद्ध धर्मी कहते हैं । वेदापौरुषेयवाद – वेद को अपौरुषेय अर्थात् किसी भी पुरुषादि द्वारा रचा नहीं है ऐसा मीमांसक आदि परवादी मानते हैं उसको वेदापौरुषेयवाद कहते हैं । व्याचिख्या - कहने की इच्छा, व्यंजकध्वनि-व्यंजकध्वनि नामा कोई एक पदार्थ है वह शब्द को प्रगट करता है ऐसा शब्द नित्य वादी मीमांसक आदि का कहना है । वासना - संस्कार, आसक्ति, विप्रकृष्ट-दूर, व्यवस्था "विशिष्ट स्थिति कारणं व्यवस्था" विशिष्ट स्थिति का जो कारण है उसे व्यवस्था कहते हैं । विनष्टाक्ष- नष्ट हो गई है प्राखें जिसकी उसे विनष्टाक्ष कहते हैं । व्यावृत्तप्रत्यय-यह इससे भिन्न है इत्यादि श्राकार वाले ज्ञान को व्यावृत्तप्रत्यय कहते हैं । व्यंजक कारण-वस्तु को प्रगट या प्रकाशित करने वाला कारण व्यंजककारण कहलाता है । व्यंग्य-व्यंजक — प्रगट करने योग्य को व्यंग्य और प्रगट करने वाले को व्यंजक कहते हैं । व्यवच्छेद्य-व्यवच्छेदक - पृथक् करने योग्य अथवा जानने योग्य पदार्थ को व्यवच्छेद्य कहते हैं प्रौर पृथक् करने वाले अथवा जानने वाले को व्यवच्छेदक कहते हैं । व्यधिकरणा सिद्ध हेत्वाभास - साध्य और हेतु का अधिकरण भिन्न भिन्न होना व्यधिकरणासिद्ध हेत्वाभास कहलाता है । (श) शाबलेय - चितकबरी गाय आदि पशु । शब्द नित्यत्ववाद - शब्द प्रकाश गुरण है एवं वह सर्वथा नित्य एक और व्यापक ऐसा मीमांसक आदि मानते हैं । (स) संवर - कर्मों का आना रुकना संवर कहलाता है, सदुपलंभ प्रमाण पंचक- अस्तित्व को ग्रहण करने वाले प्रत्यक्ष अनुमान, ग्रागम, उपमा और अर्थापत्ति ये पांच प्रमाण हैं ऐसा मीमांसक आदि मानते हैं, इनका कहना है कि प्रत्यक्षादि प्रमाण केवल सत् या अस्तित्व को ही जान सकते हैं असत् या प्रभाव को नहीं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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