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प्रमेयकमल मार्तण्डे नुषंगः, तत्रापि पूर्वोक्त एव दोषोऽनवस्थाकारी। न च व्यतिरिक्तधर्मतद्भावेपि स्फोटस्यानभिव्यक्तस्वरूपापरित्यागे पूर्ववदर्थप्रतिपत्तिहेतुत्वम् । तत्यागे चाऽनित्यत्वप्रसक्तिः ।
किंच, पूर्ववर्णैः संस्कारः स्फोटस्य क्रियमाणः किमेकदेशेन क्रियते, सर्वात्मना वा ? यद्येकदेशेन; तदा तद्देशानामप्यतोर्थान्तरानान्तरपक्षयोः पूर्वोक्तदोषानुषंगः । सर्वात्मना तु संस्कारे सर्वत्र सर्वेषां ततोऽर्थप्रतिपत्तिः स्यात् ।।
किंच, स्फोटसंस्कारः स्फोटबिषयसंवेदनोत्पादनम्, प्रावरणापनयनं वा ? यद्यावरणापनयनम्; तदैकत्रैकदावरणापगमे सर्वदेशावस्थितैः सर्वदा व्यापिनित्यतयोपलभ्येत, नित्यव्यापित्वाभ्यामपगता
जैसे संस्कार के पहले अर्थ प्रतिपत्ति का हेतुपना उसमें घटित नहीं होता था वैसे संस्कार के पश्चात् भी घटित नहीं होगा, क्योंकि स्फोट तो अनभिव्यक्त स्वरूप ही है। और यदि स्फोट का अनभिव्यक्त स्वरूप समाप्त होता है तो स्पष्ट रूप से स्फोट का अनित्यपना सिद्ध होता है। अर्थात वर्ण ज्ञान जन्य संस्कार से स्फोट के अनभिव्यक्त स्वरूप का त्याग होता है इसका अर्थ स्फोट अनित्य है, अनित्य का यही लक्षण है कि जो अपने स्वरूप में परिवर्तन करे ।
दूसरी बात यह है कि पूर्व वर्णों द्वारा स्फोट का संस्कार किया जाता है वह एक देश से किया जाता है अथवा सर्व देश से किया जाता है ? यदि एक देश से किया जाता है तो वह एक एक देश स्फोट से भिन्न है कि अभिन्न ऐसे दो पक्ष उपस्थित होकर उनमें वही पूर्वोक्त दोष आता है । स्फोट का सर्व देश से संस्कार किया जाता है ऐसा पक्ष माने तो सर्वत्र सभी प्राणियों को उससे अर्थ की प्रतीति होवेगी, क्योंकि स्फोट व्यापक एवं नित्य है।
किंच, स्फोट संस्कार इस पद का क्या अर्थ है स्फोट के विषय में संवेदन का उत्पादन करना या आवरण को दूर करना ? यदि आवरण को दूर करना स्फोट संस्कार कहलाता है तो एक जगह एक बार आवरण के दूर होने पर सर्व देश में अवस्थित व्यक्तियों द्वारा हमेशा के लिये नित्य व्यापी रूप से उसकी उपलब्धि हो सकेगी, क्योंकि नित्य एवं व्यापी रूप से जिसका आवरण दूर हो गया है ऐसे स्फोट का सर्वत्र सर्वदा उपलभ्य स्वभाव ही रहता है। अभिप्राय यह है कि स्फोट में सदा एकसा स्वभाव रहता है इसलिये यदि उसमें उपलभ्य स्वभाव है तो वही हमेशा रहेगा
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