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प्रमेयकमलमार्तण्डे तथा चेदमप्ययुक्तम्-'न चैकस्य वस्तुनो रूपद्वयमस्त्येकस्य द्वित्वविरोधात्' इति । . यदि चाभावोभिधीयते शब्द वो नाभिधीयते इति क्रियाप्रतिषेधान्न किञ्चित्कृतं स्यात् । तथा च कथं नदीदेशद्वीपपर्वतस्वर्गापवर्गादिष्वाप्तप्रणीतवाक्यात्प्रतिपत्तिः श्रेयःसाधनानुष्ठाने प्रवृत्तिर्वा ? अन्यथा सर्वस्मादपि वाक्यात्सर्वत्रार्थे प्रतिपत्तिप्रवृत्त्यादिप्रसंगः ।
सत्येतरव्यवस्थाभावश्च तत्त्वेतरप्रतिपत्तेरभावात् । तथाच 'यत्सत्तत्सर्वमक्षणिक क्षणिके कमयोगपद्याभ्यामर्थक्रिया विरोधात्' इत्यादेरिव 'यत्सत्तत्सर्वं क्षणिकं नित्ये क्रमयोगपद्याभ्यामर्थक्रियानुपपत्तेः' इत्यादेरप्यसत्त्वानुषंगः । विपर्ययप्रसंगो वा, सर्वथार्थासंस्पर्शित्वाविशेषात् । कस्यचिदनुमान
इस प्रकार सामग्री के भेद के कारण प्रतिभासों में भेद होना सिद्ध होने पर बौद्धों का उक्त कथन विरोध को प्राप्त होता है कि-एक वस्तु के दो रूप ( विशद अविशद ) नहीं हो सकते, क्योंकि एक के द्वित्वपने का विरोध है इत्यादि ।
यदि शब्दों द्वारा प्रभाव अर्थात् अपोह ही कहा जाता है सद्भाव नहीं कहा जाता इस प्रकार भाव रूप क्रिया का ही निषेध किया जाता है तो शब्द द्वारा कुछ भी नहीं किया जाता ऐसा अर्थ निकलता है ? फिर तो नदी, देश, द्वीप, पर्वत, स्वर्ग, मोक्ष आदि पदार्थों में प्राप्त प्रणीत शब्द से प्रतिपत्ति किस प्रकार हो सकती है ? तथा मोक्ष के साधनभूत अनुष्ठान में प्रवृत्ति भी किस प्रकार हो सकती है ? और यदि शब्द से कुछ नहीं किये जाने पर भी अर्थ प्रतिपत्ति एवं प्रवृत्ति प्रादि होती है तो सभी वाक्य से सब अर्थों में प्रति पत्ति और प्रवृत्ति हो जाने का प्रसंग भी प्राप्त होता है ।
तथा शब्द द्वारा कुछ प्रतीत नहीं होता अपोह ही प्रतीत होता है ऐसा माने तो सत्य और असत्य की व्यवस्था नहीं हो सकेगी, क्योंकि तत्व और अतत्त्व को प्रतिपत्ति का अभाव है । जब सत्य असत्य की व्यवस्था नहीं है तब “जो सत् है वह सर्व ही अक्षणिक है क्योंकि क्षणिक में क्रम और युगपतरूप से अर्थ क्रिया का विरोध है" जैसे यह वाक्य आप बौद्ध को असत्य रूप है वैसे “जो सत् है वह सर्व क्षणिक है क्योंकि नित्य में क्रम और युगपत् रूप से अर्थ क्रिया का विरोध है" यह वाच्य भी असत्य रूप होना चाहिए ? अथवा उपर्युक्त वाक्यों में से पहले का वाक्य सत्य और अंत का वाक्य असत्य ऐसा विपर्यय का प्रसंग आ सकता है ? क्योंकि शब्द या वाक्य सर्वथा किसी भी अर्थ का स्पर्श ही नहीं करते । यदि आप बौद्ध किसी अनुमान वाक्य को किसी प्रकार
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