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________________ अपोहवादः ५५५ किंच, पोहो वाच्यः अथावाच्यो वा ? वाच्यश्चेत्कि विधिरूपेण, अन्यव्यावृत्त्या वा ? यदि विधिरूपेण कथमपोहः सर्वशब्दार्थ : ? अथान्यव्यावृत्त्या; तर्हि नापोहोपि शब्दाधिगम्यो मुख्यः । अनवस्था च-तद्व्यावृत्तेरपि व्यावृत्यन्तरेणाभिधानात् । अथाऽवाच्यः; तर्हि 'श्रन्यशब्दार्थाऽपोहं शब्दः प्रतिपादयति' इत्यस्य व्याघातः । किंच, 'नान्यापोहः ग्रनन्यापोह:' इत्यादौ विधिरूपादन्यद्वाच्यं नोपलभ्यते प्रतिषेधद्वयेन विधेरेवाध्यवसायात् । जैन - यह कथन प्रयुक्त है, इस अनुमान प्रयोग में भी सद्भाव रूप मेघ रहित आकाश एवं सूर्य प्रकाश स्वरूप वस्तु मौजूद ही है, क्योंकि प्रभाव भावांतर स्वभाव वाला होता है ऐसा हम प्रतिपादन करते हैं । आप बौद्ध के मत में विवाद में आगत अपोहों में ही केवल गम्य गमक का अभाव हो सो बात नहीं अपितु वृष्टि प्रभाव और मेघ अभाव में भी गम्य गमक भाव नहीं है । दूसरी बात यह है कि यह अपोह शब्द द्वारा वाच्य है कि अवाच्य है ? यदि वाच्य हैं तो विधि रूप शब्द से वाच्य है अथवा ग्रन्य व्यावृत्ति से वाच्य होता है ? यदि विधिरुप शब्द द्वारा वाच्य है तो सभी शब्दार्थ प्रपोह रूप ही होता है ऐसा किस प्रकार कह सकते हैं ? अर्थात् नहीं कह सकते, क्योंकि अपोह विधि अर्थात् अस्तित्व रूप शब्द द्वारा वाच्य होने से सभी शब्दों का अर्थ अपोह ( अभाव ) ही होता है ऐसा आपका सिद्धांत खंडित होता है । अन्य व्यावृत्ति से प्रपोह वाच्य होता है ऐसा कहो तो स्वलक्षण के समान प्रपोह भी शब्द द्वारा मुख्य रूप से गम्य होना सिद्ध नहीं होता । तथा इस तरह मानने से अनवस्था भी आती है क्योंकि अन्य व्यावृत्ति भी किसी अन्य व्यावृत्ति से वाच्य होगी। यदि प्रपोह को प्रवाच्य मानते हैं तो गो आदि शब्द अन्य शब्दार्थ के अपोह का प्रतिपादन करता है ऐसे बौद्ध के मत का व्याघात हो जाता है | किंच, "न अन्यापोहः प्रनन्यापोहः" इत्यादि शब्द में विधि रूप वाच्य को छोड़ कर अन्य कुछ भी अर्थ नहीं निकलता है क्योंकि दो प्रतिषेध द्वारा तो विधि का ही निश्चय होता है, अर्थात् जिस शब्द में ( या वाक्य में ) दो नकार प्रयुक्त होते हैं उसका विधि रूप अर्थ ही होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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