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________________ ४१७ अविनाभावादीनां लक्षणानि तेन पक्षः तदाधारसूचनाय उक्तः ॥९८।। तेन पक्षो गम्यमानोपि व्युत्पन्नप्रयोगे तदाधारसूचनाय साध्याधारसूचनायोक्तः। यथा च गम्यमानस्यापि पक्षस्य प्रयोगो नियमेन कर्त्तव्यस्तथा प्रागेव प्रतिपादितम् । असंभवरूप हेतु प्रयोगसे ही साध्य सिद्धि हो जाती है। उसके लिये दृष्टान्तादिकी जरूरत नहीं पड़ती। तेन पक्षः तदाधारस्चनाय उक्तः ।।१८।। सूत्रार्थ- इसी कारणसे साध्यके अाधारकी सूचना करनेके लिए पक्षका प्रयोग करनेको कहा है। ज्ञात रहते हुए भी पक्षका प्रयोग व्युत्पन्न के प्रति किया जाता है कि जिससे साध्यका आधार सूचित होवे । पक्षका प्रयोग नियमसे करना चाहिए । ऐसा पहले अच्छी तरहसे सिद्ध कर आये हैं। भावार्थ-अनुमान प्रमाणका विवेचन बहुत विस्तृत हुआ है इस प्रकरणमें अनुमान, हेतु, अविनाभाव, तर्क, उपनय, निगमन, दृष्टांत, पक्ष, साध्य आदि सभी लक्षण किया गया है। इनमें सबसे अधिक वर्णन हेतुका है, क्योंकि अनुमान प्रमाणका आधार स्तम्भ हेतु है हेतुके कितने भेद होते हैं इसमें परवादियोंके यहां विभिन्न मान्यतायें हैं । बौद्ध हेतुके तीन भेद मानता है। कार्य हेतु, स्वभाव हेतु और अनुपलब्धि हेतु । किन्तु इनमें पूर्वचर आदि अन्य हेतुअोंका अंतर्भाव अशक्य है अतः बौद्धोंकी मान्यताका निरसन करते हुए पूर्वचर आदिका सयुक्तिक विवेचन किया है। इस प्रमेयकमल मार्तण्ड ग्रथमें हेतुओंके कुल भेद बाईस किये गये हैं। हेतु भेद संबंधी चार्ट अगले पृष्ठ पर देखिये ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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