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________________ ३७८ प्रमेयकमलमार्तण्डे प्रतिज्ञातार्थस्य तेनानुमीयमानत्वात् । उदाहरणं प्रत्यक्षम्, “वादिप्रतिवादिनोर्यत्र बुद्धिसाम्यं तदुदाहरणम्'' [ ] इति वचनात् । उपनय उपमानम्, दृष्टांतर्मिसाध्यमिणोः सादृश्यात्, “प्रसिद्धसाधासाध्यसाधनमुपमानम्” [ न्यायसू० १११।६ ] इत्यभिधानात् । सर्वेषामेक विषयत्वप्रदर्शनफलं निगमनमित्याशंकयोदाहरणस्य तावत्तदंगत्वं निराकुर्वन्नाह-नोदाहरणम् । अनुमानांगमिति सम्बन्धः । तद्धि किं साक्षात्साध्यप्रतिपत्त्यर्थमुपादीयते, हेतोः साध्याविनाभावनिश्चयार्थं वा, व्याप्तिस्मरणार्थं वा प्रकारान्तरासम्भवात् ? तत्राद्य विकल्पोऽयुक्तः इसप्रकार है-पक्ष अर्थात् प्रतिज्ञा आगम ज्ञान रूप होती है । हेतु अनुमान रूप होता है, क्योंकि प्रतिज्ञात अर्थ अनुमान द्वारा अनुमेय (जानने योग्य) होता है। उदाहरण अर्थात् दृष्टांत प्रत्यक्ष होता है। क्योंकि वादी और प्रतिवादी ( जो पहले अपना पक्ष स्थापित करता है उसे वादी कहते हैं और जो उस पक्षका निराकरण करते हुए अपना दूसरा पक्ष (सिद्धांत) स्थापित करता है उसे प्रतिवादी कहते हैं ) का बुद्धिसाम्य जहां पर हो उसे उदाहरण कहते हैं, अर्थात् दोनोंको जो मान्य एवं ज्ञात हो उसे उदाहरण कहते हैं। उपनय उपमा प्रमाणरूप होता है क्योंकि दृष्टांत धर्मी और साध्यधर्मीका सादृश्य इसका विषय है, प्रसिद्ध साधर्म्यसे साध्यको साधना उपमाज्ञान कहलाता है इस ज्ञानरूप उपनय होता है। सभी प्रमाणोंका एक विषय है ऐसा प्रदर्शन करना अर्थात् आगम अनुमानादिप्रमाण द्वारा प्रतिपादित पक्ष हेतु आदिका विषय एक अग्नि आदि साध्यको सिद्ध करना ही फल है ऐसा अंतमें दिखलाना निगमननामा अनुमानांग है। इसप्रकार के नैयायिकादिके मंतव्यको लक्ष्य करके ही माणिक्यनंदी प्राचार्यने "नोदाहरणम्' इस पदका प्रयोग किया है अर्थात् उदाहरण अनुमानका अंग नहीं है ऐसा प्रथम ही यहां पर कहकर उक्त मंतव्यका निराकरण किया है ( आगे क्रमशः उपनय और निगमनका भी निराकरण करेंगे) __उदाहरणका प्रयोग साक्षात् साध्यकी प्रतिपत्ति करानेके लिये होता है अथवा हेतुका साध्याविनाभाव निश्चित करानेके लिये होता है या व्याप्तिका स्मरण करानेके लिये होता है ? इसप्रकार नैयायिकके प्रति जैनके प्रश्न हैं उक्त तीन विकल्पों को छोड़कर अन्य प्रकार तो संभव नहीं है । प्रथम विकल्प प्रयुक्त हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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