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________________ पूर्ववदाद्यनुमान विध्यनिरासः यच्चोक्तम्-विशेषप्रतिपत्तिस्तु पक्षधर्मताबलादेवेति तत्र पक्षधर्मता धूमस्य तत्सामान्यस्य वा ? तत्राद्यः पक्षोऽसङ्गतः विशेषेण व्याप्तेरप्रतिपत्तितस्तद्गमकत्वायोगात् । द्वितीयपक्षेप्यग्निसामान्यस्यैव धूमसामान्यात्सिद्धिः स्यात् तेनैव तस्य व्याप्तेः, नाग्निविशेषस्य अनेनाव्याप्तेः । अथ साधनसामान्यात् साध्यसामान्यप्रतिपत्त रेवेष्टविशेषप्रतिपत्तिः सामान्यस्य विशेषनिष्ठत्वात् । ननु तत्सामान्यमपि विशेषमात्रेण व्याप्तं सत्तदेव गमयेन्नान्यत् । अथ विशिष्टविशेषाधारं लिङ्गसामान्यं प्रतीयमानं विशिष्टविशेषाधिकरणं साध्यसामान्यं गमयतीत्युच्यते, तदप्युक्तिमात्रम्; तथा व्याप्तेरभावात् । अथ विपक्षे सद्भावबाधकप्रमारणवशात्तत्सिद्धिरिष्यते; तर्हि तावतैव पर्याप्तत्वात् किमन्वयेन परस्य ? ३५७ "विशेषकी प्रतिपत्ति पक्षधर्मत्व के बलसे ही हो जाती है" ऐसा आपने कहा था उसमें प्रश्न होता है कि यह पक्षधर्मता किसकी है धूमकी ( हेतुकी ) या साध्यसाधनभूत सामान्यकी ? प्रथम पक्ष असंगत है, विशेषरूपसे व्याप्तिकी प्रतिपत्ति नहीं होने के कारण वह पक्षधर्मत्व साध्यका गमक होना शक्य है । द्वितीयपक्ष - पक्षधर्मता साध्यसाधन सामान्यकी है ऐसा माने तो धूमसामान्यसे अग्निसामान्य ही सिद्धि हो पायेगी क्योंकि उसीके साथ धूम सामान्यको व्याप्त है, इस धूम सामान्य से अग्निविशेषकी सिद्धि तो अशक्य है क्योंकि उसके साथ व्याप्त ही नहीं है । योग – सामान्य साधनसे सामान्य साध्यको प्रतिपत्ति होने को ही विशेषकी प्रतिपत्ति कहते हैं, क्योंकि सामान्य विशेषमें निष्ठ रहता है । जैन —तो उक्त सामान्य भी विशेष मात्र से व्याप्त होता है अतः उसीका गमक होवेगा अन्यका नहीं । योग - विशिष्ट विशेषके ग्राधार में प्रतीत होनेवाला साधनसामान्य ( पर्वतस्थधूम) अपने विशिष्ट विशेष अधिकरणभूत साध्यसामान्यका गमक ( पर्वतस्थ अग्निका गमक) होता है ऐसा हमारा कहना है ! जैन - यह भी उक्तिमात्र है, इसतरह से कथन करने पर व्याप्तिका प्रभाव होवेगा, अर्थात् जो यह पर्वतस्यधूम है वह पर्वतस्थ अग्नि वाला है ऐसी व्याप्ति नहीं हो सकती । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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