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________________ तर्कस्वरूपविचारः ३१७ तदप्यसमीचीनम्; यतोऽनुमानस्याभ्युपगम्यत एव स्वयोग्यताग्रहण निरपेक्षमनुमेयार्थप्रकाशनम्, उत्पत्तिस्तु लिङ्गलिङ्गिसम्बन्धग्रहण निरपेक्षा नास्ति, अगृहीततत्सम्बन्धस्य प्रतिपत्त : क्वचित्कदाचित्तदुत्पत्त्यप्रतीतेः । न च प्रत्यक्षस्याप्युत्पत्तिः करणार्थसंबंधग्रहणापेक्षा प्रतिपन्ना; स्वयमगृहीततत्सम्बन्धस्यापि प्रतिपत्त स्तदुत्पत्तिप्रतीतेः । तद्वद्हस्यापि स्वार्थसम्बन्धग्रहणानपेक्षस्योत्पत्तिप्रतिपत्त!त्पत्ती संबंधग्रहणापेक्षा युक्तिमतीत्यनवद्यम् । समाधान-यह शंका ठीक नहीं, अनुमान प्रमाण अपनी योग्यता ग्रहण की अपेक्षा किये बिना अनुमेय अर्थको प्रकाशित करता है ऐसा तो हम मानते ही हैं, किन्तु अनुमान की जो उत्पत्ति होती है वह हेतु और साध्यादिका संबंध ग्रहण किये बिना नहीं होती, क्योंकि जिस पुरुष ने साध्यसाधन संबंध को ज्ञात नहीं किया उसको कहीं पर किसी काल में भी अनुमान की उत्पत्ति होती हुई प्रतीत नहीं होती है । प्रत्यक्ष की उत्पत्ति भी इन्द्रिय और पदार्थके संबंधको ग्रहण करने की अपेक्षा रखती है ऐसा भी नहीं कहना, क्योंकि इन्द्रिय आदिके संबंधको स्वयं ग्रहण किये बिना भी प्रतिपत्ता पुरुषके प्रत्यक्ष प्रमाण उत्पन्न होता हुआ देखा जाता है, इसीप्रकार तर्क प्रमाण अपने उपलभ और अनुपलंभ के संबंधको ग्रहण करने की अपेक्षा किये बिना उत्पन्न होता हुआ देखा जाता है अतः इसकी उत्पत्ति में सम्बन्ध ग्रहण की अपेक्षा बतलाना अयुक्त है, इस प्रकार तर्क प्रमाण का कारण तथा स्वरूप निर्दोष रूप से सिद्ध होता है। । तर्क प्रमाण समाप्त । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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