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________________ ਏਏਏਏਏਏਏਏਡਕੋਰ ਫੋਟੋਭੇਡਵਰ ε अथ तृतीयः परोक्षपरिच्छेदः 666666666666666666EEEEEEÜ श्रथेदानीं परोक्षप्रमाणस्वरूपनिरूपणाय - परोक्षमितरत् ||१|| इत्याह । प्रतिपादितविशदस्वरूपविज्ञानाद्यदन्यदऽविशदस्वरूपं विज्ञानं तत्परोक्षम् । तथा च प्रयोगः - प्रविशदज्ञानात्मकं परोक्षं परोक्षत्वात् । यन्नाऽविशदज्ञानात्मकं तन्न परोक्षम् यथा मुख्येतरप्रत्यक्षम्, परोक्षं चेदं वक्ष्यमाणं विज्ञानम्, तस्मादविशदज्ञानात्मकमिति । तन्निमित्तप्रकारप्रकाशनाय प्रत्यक्षेत्याद्याह Jain Education International EEEEEEEEE प्रत्यक्षादिनिमित्तं स्मृतिप्रत्यभिज्ञानतर्कानुमानागमभेदम् ||२|| अब यहां पर श्री माणिक्यनंदी आचार्य परोक्ष प्रमारण के स्वरूप का सूत्रबद्ध निरूपण करते हैं— “परोक्षमितरत्” -- सूत्रार्थ- - पहले प्रत्यक्ष प्रमाण का लक्षण कहा था उससे पृथक् लक्षण वाला परोक्ष प्रमाण होता है । विशद ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण हैं ऐसा प्रतिपादन कर चुके हैंउससे अन्य अर्थात् अविशद ज्ञान परोक्ष प्रमाण है । इसी को अनुमान प्रयोग द्वारा बतलाते हैं - परोक्ष प्रमाण ग्रविशद ज्ञान रूप है, क्योंकि वह परोक्ष है, जो अविशद ज्ञान रूप नहीं है वह परोक्ष नहीं कहलाता जैसे - मुख्य प्रत्यक्ष और सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष प्रमाण, परोक्ष नहीं कहलाता है यह वक्ष्यमाण ज्ञान परोक्ष है, अतः प्रविशदज्ञान रूप है । उस परोक्ष प्रमाण के कारण और भेद अग्रिम सूत्र में कहते हैं" प्रत्यक्षादि निमित्त स्मृति प्रत्यभिज्ञान तर्कानुमानागम भेदम्” ॥२॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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