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________________ मोक्षस्वरूपविचारः २५१ यच्च स्वरूपे चैतन्यमात्रेऽवस्थानं मोक्ष इत्युक्तम्; तदयुक्तम्; चैतन्यविशेषेऽनन्तज्ञानादिस्वरूपेऽवस्थानस्य मोक्षत्वसाधनात् । न ह्यनन्तज्ञानादिकमात्मनोऽस्वरूपं सर्वज्ञत्वादिविरोधात् । प्रधानस्य सर्वज्ञत्वादिस्वरूपं नात्मन इत्यसत्; तस्याचेतनत्वेनाकाशादिवत्तद्विरोधात् । ज्ञानादेरप्यचेतनत्वात् प्रधानस्वभ(भा)वत्वाविरोधश्च त्; कुतस्तदचेतनत्वसिद्धिः ? 'अचेतना ज्ञानादय उत्पत्तिमत्त्वाद् घटादिवत्' इत्यनुमानाच्चेत्; न; हेतोरनुभवेनानेकान्तात्, तस्य चेतनत्वेप्युत्पत्तिमत्त्वात् । न चोत्पत्तिमत्त्वमसिद्धम्; परापेक्षत्वाबुद्धयादिवत् । परापेक्षोसौ बुद्ध्यध्यवसायापेक्षत्वात् "बुद्ध्यध्यवसित मर्थ पुरुषश्चेतयते' [ ] इत्यभिधानात् । परवादी को मानना होगा। यदि उक्त फलोपभोगको अनौपक्रमिक स्वीकार करे तो वैसा फलोपभोग सदा होनेसे मोक्षका सद्भाव भी सदा मानना होगा। चैतन्यमात्र स्वरूप में अवस्थान होना मोक्ष है ऐसा पूर्वोक्त कथन भी,अयुक्त है, चैतन्यमात्र में नहीं अपितु अनन्तज्ञान दर्शन आदि चैतन्यके विशेष स्वरूप में अवस्थान होना मोक्ष है । अदि अनंतज्ञान आदिको आत्माका स्वरूप नहीं माना जायगा तो उसके सर्वज्ञपना आदि धर्मों के साथ विरोध प्राप्त होगा। सांख्य-सर्वज्ञपना आदि धर्म प्रधानका स्वरूप है, आत्माका नहीं। जैन-यह कथन असत् है, प्रधान तत्त्व अचेतन होनेसे उसमें सर्वज्ञत्व आदि धर्म पाये जाना विरुद्ध है जैसे अचेतन आकाशादि पदार्थों में सर्वज्ञत्वादि पाये जाना विरुद्ध है। __सांख्य-ज्ञानादि धर्मोको भी अचेतन स्वीकार किया है अतः वे प्रधानके स्वभाव हो सकनेसे विरोध नहीं आता। जैन-ज्ञानादि धर्म अचेतन हैं ऐसा किस हेतुसे सिद्ध होगा? सांख्य-ज्ञानादि गुणधर्म अचेतन हैं, क्योंकि उत्पत्तिमानरूप हैं, जैसे घट पट आदि उत्पत्तिमान होनेसे अचेतन हैं। इस अनुमान द्वारा ज्ञानादि का अचेतनपना सिद्ध होता है। जैन-यह अनुमान असत् है क्योंकि हेतु अनुभव [दर्शन] के साथ अनेकान्तिक हो जाता है, अनुभवमें चेतनपना होते हुए भी उत्पत्तिमत्व है, अनुभवका उत्पत्ति मानपना असिद्ध है ऐसा भी नहीं समझना, क्योंकि यह बुद्धि आदिकी तरह परापेक्षी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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