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प्रमेयकमलमार्तण्डे मसिद्धम्। सन्तानत्वसाधनस्यासत्प्रतिपक्षत्वासिद्धः, तत्सिद्धौ हि हेतोर्गमकत्वम् । कालात्ययापदिष्टत्वं च, अनेनैवानुमानेन बाधितपक्ष निर्देशानन्तरं प्रयुक्तत्वात् ।
यच्च तत्त्वज्ञानस्य विपर्ययज्ञानव्यवच्छेदक्रमेण निःश्रेयसहेतुत्वमित्युक्तम्; तदप्युक्तिमात्रम्; ततो विपर्ययज्ञानव्यवच्छेदक्रमेण धर्माधर्मयोस्तत्कार्यस्य च शरीरादेरभावेपि अनन्तातीन्द्रियाखिलपदार्थविषयसम्यग्ज्ञानसुखादिसन्तानस्याभावासिद्धः। इन्द्रियजज्ञानादिसन्तानोच्छेदसाधने च सिद्धसाधनम् । इन्द्रियाद्यपाये ज्ञानादिसन्तानसद्भावश्चाशेषज्ञसिद्धिप्रस्तावे प्रतिपादितः । कथं चातीन्द्रियज्ञानाद्यनभ्यु
संतानत्व हेतुवाले अनुमानसे संतानका सर्वथा उच्छेद होना सिद्ध होता है अतः "सर्व प्रमाण द्वारा वैसा उच्छेद होना असिद्ध है" ऐसा हमारे द्वारा प्रयुक्त हुआ हेतु प्रसिद्ध दोष युक्त है ऐसी आशंका भी नहीं करना, क्योंकि वैशेषिकके संतानत्व हेतुका असत्प्रतिपक्षपना असिद्ध है, हेतुका असत् प्रतिपक्षत्व सिद्ध होनेपर ही वह अपने साध्यका गमक होता है अन्यथा नहीं। संतानत्व हेतु कालात्ययापदिष्ट दोष युक्त भी है, क्योंकि इसी अनुमान द्वारा [ बुद्धि आदि गुणोंकी संतान अत्यन्त उच्छिन्न होनेवाली नहीं हैइत्यादि अनुमान द्वारा] संतानत्व हेतुका पक्ष बाधित होता है, जिस हेतुका पक्ष प्रमाण द्वारा बाधित होता है उसको कालात्ययापदिष्ट हेत्वाभास कहते हैं । इसप्रकार संतानत्व हेतु प्रसिद्ध, विरुद्ध, अनैकांतिक, सत्प्रतिपक्ष और कालात्ययापदिष्ट इन पांचों ही दोषों से युक्त होनेके कारण स्वसाध्यको [ बुद्धि आदिगुणोंका अत्यन्त नाश होना ] कथमपि सिद्ध नहीं कर सकता ऐसा निश्चय हुआ।
तत्त्वज्ञानसे विपरीतज्ञान का नाश होता है और क्रमसे धर्मादिका नाश होकर मोक्ष होता है, अतः तत्त्वज्ञान मोक्षका हेतु है ऐसा पूर्वोक्त कथन भी प्रयुक्त है, तत्त्वज्ञानद्वारा विपरीत ज्ञानका व्यवच्छेद एवं क्रमसे धर्माधर्म तथा उनके कार्यभूत शरीरादिका नाश होनेपर भी अनंत अतीन्द्रिय अखिल पदार्थोंको विषय करने वाला सम्यग्ज्ञान तथा सुखादि संतानोंका नाश होना प्रसिद्ध है । यदि इन्द्रियजन्य ज्ञानादि संतान का उच्छेद करना इष्ट हो तो यह संतानत्व हेतु सिद्ध साधन है, सर्वज्ञ सिद्धि प्रकरण में हम इसका प्रतिपादन कर चुके हैं कि सर्वज्ञ अवस्था एवं मुक्तावस्थामें इन्द्रियादिके नहीं रहनेपर भी ज्ञानादि संतानका सद्भाव पाया जाता है । यदि अतीन्द्रिय ज्ञानादि को न माना जाय तो महेश्वर में उसका अस्तित्व किसप्रकार सिद्ध होगा ? ईश्वर का ज्ञान नित्य है इस मान्यताका निरसन तो ईश्वर का निराकरण करते समय हो चुका
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