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________________ मोक्षस्वरूप विचार: २०२ न च मिथ्याज्ञानाभावे दुष्कर्मणोऽभावात् कस्य परिहारार्थं तदित्यभिधातव्यम्; यतो मिथ्याज्ञान: भावे - निषिद्धाचरण निमित्तस्यैव प्रत्यवायस्याभावो न विहितानुष्ठाननिमित्तस्य, "प्रकुर्वन्विहितं कर्म प्रत्यवायेन लिप्यते” [ तत्परिहारार्थं युक्तम् । तदुक्तम् - ] इत्यागमात् । ततस्तदनुष्ठानं " नित्यनैमित्तिके कुर्यात्प्रत्यवाय जिहासया । मोक्षार्थी न प्रवर्त्तेत तत्र काम्यनिषिद्धयोः ॥ १ ॥ [ मी० श्लो० सम्बन्धा० श्लो० ११० ] नित्यनैमित्तिकैरेव कुर्वाणो दुरितक्षयम् । ज्ञानं च विमलीकुर्वन्नभ्यासेन तु पाचयेत् ॥ २॥ अभ्यासात्पक्व विज्ञानः कैवल्यं लभते नरः । काम्ये निषिद्धे च परं प्रवृत्तिप्रतिषेधतः ॥ ३ ॥ " [ ] प्रत्यवाय तो संभावित है । "अकुर्वन् विहितं कर्म प्रत्यवायेन लिप्यते" अर्थात् विहित ग्रनुष्ठानको नहीं करने वाले व्यक्ति दुष्कर्मसे बंध जाते हैं । ऐसा आगम वाक्य है, अतः प्रत्यवाय के परिहारार्थ विहितानुष्ठान करना आवश्यक है । कहा भी है ज्ञानी पुरुष नित्य नैमित्तिक क्रिया प्रत्यवायके परिहार हेतु करता है, मोक्षार्थी काम्य तथा निषिद्ध अर्थात् होम प्रादि शुभ क्रिया तथा ब्राह्मण वध आदि अशुभ क्रिया इनको सर्वथा न करें ॥ १ ॥ मोक्षाभिलाषी ज्ञानी नित्य नैमित्तिक क्रिया द्वारा दुरितका क्षय करें, तथा ज्ञानको निर्मल करते हुए उसको विस्तृत करे || २ || अभ्यास द्वारा उसका ज्ञान हो जाता है और वह मोक्षको प्राप्त कर लेता है, उस तत्त्वज्ञानोके प्रथमतः ही काम्य और निषिद्ध क्रियाका प्रतिषेध किया गया है || ३ || स्वर्गका अभिलाषी इसप्रकार की क्रिया करे इत्यादि आगम वाक्यके श्रवणसे हो गयी है यागकी इच्छा जिसके ऐसे पुरुष द्वारा अग्निष्टोम आदि क्रिया की जाती है उसे 'काम्य' कहते हैं । संपूर्ण विशेष गुणोंका उच्छेद होकर विशिष्ट ग्रात्म स्वरूप जो निर्वाण होता है उसे कैवल्य कहते हैं । Jain Education International शंका- मिथ्याज्ञानका नाश होनेसे रागादिका नाश होता है इत्यादि क्रम होनेवाला विशिष्ट ग्रात्मस्वरूप निर्वाण तत्त्वज्ञानका कार्य होनेसे अनित्य है ? समाधान-ऐसा नहीं है, आपने अनित्य किसको कहा विशेष गुणोंके उच्छेदको या उस उच्छेदसे विशिष्ट ग्रात्माको ? विशेष गुणोंके उच्छेदको नित्य कहना तो ठीक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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