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________________ aaaaaaa ईश्वरवादः ननु चावरण विश्लेषादशेषवेदिनो विज्ञानं प्रभवतीत्यसाम्प्रतम्; तस्यानादिमुक्तत्वेनावरणस्यैवासम्भवादिति चेत्, तदयुक्तम्; अनादिमुक्तत्वस्यासिद्धः। तथा हि-नेश्वरोऽनादिमुक्तो मुक्तत्वात्तदन्यमुक्तवत् । बन्धापेक्षया च मुक्तव्यपदेशः, तद्रहिते चास्याप्यभावः स्यादाकाशवत् । ननु चानादिमुक्तत्वं तस्यानादेः क्षित्यादिकार्यपरम्परायाः कर्तृत्वात्सिद्धम् । न चास्य तत्कर्तृत्वमसिद्धम्; तथाहि-क्षित्यादिकं बुद्धिमद्ध तुकं कार्यत्वात्, यत्कार्यं तद्बुद्धिमद्धे तुकं दृष्टम् यथा यौग-नैयायिक वैशेषिक अनादि एक ईश्वर की सत्ता स्वीकार करते हैं, अब यही प्रकरण शुरू होता है । यौग-जैन ने सर्वज्ञ को सिद्ध किया है । उसमें हमारा यह कहना है कि सर्वज्ञ का ज्ञान आवरण के नाश से उत्पन्न नहीं होता सर्वज्ञ तो अनादि से मुक्त ही है अनादि सिद्ध के आवरण संभव नहीं है। जैन-यह कथन अयुक्त है, अनादि मुक्त की सिद्धि नहीं हो पाती अनुमान से सिद्ध होता है कि ईश्वर अनादि मुक्त नहीं है, क्योंकि वह मुक्त हुआ है जैसे अन्य मुक्तात्मा अनादि से मुक्त नहीं है । बंध की अपेक्षा से ही मुक्त नाम पाता है यदि बंध रहित है तो उसे मुक्त नहीं कह सकते जैसे आकाश को मुक्त शब्द से नहीं कहते हैं क्योंकि वह बँधा नहीं था। यौग-ईश्वर में अनादि मुक्तपना अनादि कालीन पृथ्वी आदि कार्य परम्परा के कर्तृत्व से सिद्ध होता है ईश्वर का यह कर्तापन असिद्ध भी नहीं है । पृथ्वी, पर्वत वृक्ष प्रादि पदार्थ किसी बुद्धिमान से निर्मित हैं, क्योंकि ये कार्य हैं, जो कार्य होता है वह बुद्धिमान के द्वारा निर्मित होता है जैसे घट, पृथ्वी आदिक भी कार्य हैं, अतः बुद्धिमान निमित्तक हैं । इस अनुमान का कार्यत्व हेतु प्रसिद्ध नहीं है । अब कार्यत्व हेतु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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