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प्रमेयकमलमार्तण्डे
घटका प्रागभाव हैं ऐसा स्याद्वादीका निर्दोष लक्षण प्रागभावलक्ष्य को सिद्ध कर देता है । प्रध्वंसाभाव वह है जिसके होने पर नियम से कार्य का नाश होता है । जैसे घटका पहला रूप स्थासादि है उसके बाद घट और उसका उत्तर परिणाम कपाल है। आप सर्वथा तुच्छाभाव रूप प्रध्वंसाभाव मानते हैं ऐसे प्रध्वंस को करने के लिए [अर्थात् घट के कपाल होने में] लाठी आदि की जरूरत नहीं रहती है । यह भी बतायो कि प्रध्वंस हुमा सो घट से भिन्न या अभिन्न ? भिन्न हुआ है ऐसा कहो तो उससे घटका कुछ बिगड़ने वाला नहीं प्रध्वंस तो अलग पड़ा है। अभिन्न है तो उस प्रध्वंस ने घट को ही किया ? नाश और नाशवान (घट) में तादात्म्य या तदुत्पत्ति संबंध हो नहीं सकता, जिससे कि उस भिन्न प्रध्वंस को घटमें जोड़ा जाय । घट का नाश और कपाल के उत्पत्ति की प्रक्रिया आपके यहां बड़ी विचित्र है-बलवान पुरुष के द्वारा प्रेरित लाठी से अवयवों में क्रिया होती है, क्रिया से अवयवों का विभाजन होता है और उससे घटका नाश होता है ऐसा आपका कहना है सो असंभव है, तथा स्व प्रारंभक अवयवों में क्रिया होना उस क्रिया से संयोग विशेष होकर कपाल का उत्पाद होता है, सो यह भी गलत है, घटका प्रध्वंस और कपालका उत्पाद तो यही है कि लाठीके चोट आदिसे मिट्टी द्रव्यका घटाकारसे विकल होकर कपालाकार बन जाना इसी तरह का प्रध्वंसादि प्रतीति में आया करता है । अत: प्रभाव प्रमाण के उत्पत्ति की सामग्री आदि की सिद्धि नहीं होने से वह पृथक् प्रमाणरूप से सिद्ध न होकर प्रत्यक्षादि प्रमारण रूप ही सिद्ध होता है ।
* सारांश समाप्त *
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