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________________ अभावस्य प्रत्यक्षादावन्तर्भाव: ५८५ 'क्षीरे दध्यादि यन्नास्ति' इत्याद्यप्यभावस्य भावस्वभावत्वे सत्येव घटते, दध्यादिविविक्तस्य क्षीरादेरेव प्रागभावादितयाध्यक्षादिप्रमाणतोध्यवसायात् । ततोऽभावस्योत्पत्तिसामग्नयाः विषयस्य चोक्तप्रकारेणासम्भवान्न पृथक्प्रमाणता। इति स्थितमेतत्प्रत्यक्षतरभेदादेव द्वधैव च प्रमाणमिति । ( कुशास्त्र की मान्यता का ) त्याग करके ऐसा स्वीकार करना चाहिये कि बलवान पुरुष द्वारा प्रेरित हुए मुद्गर आदि के व्यापार से मिट्टी द्रव्यका घटाकारसे विफल होकर कपालाकार उत्पाद हो जाना ही प्रध्वंस नामका अभाव है, अब प्रतीति का अपलाप करनेसे बस हो । अभावके विषय में वर्णन करते हुए परवादीने कहा था कि दूधमें दही आदि नहीं होते उसका कारण अभाव ही है इत्यादि, सो यह कथन तब घटित होगा कि जब अभावको भावांतरस्वभाव वाला माना जाय, दही आदि की अवस्थासे रहित जो दूध आदि पदार्थ है वही प्रागभावादिरूप कहा जाता है प्रत्यक्षादि प्रमाण द्वारा इसी तरह निश्चय होता है, अत: अभाव प्रमाणके उत्पत्ति की सामग्री एवं विषय दोनों ही पूर्वोक्त प्रकारसे संभावित नहीं होनेसे उस प्रभाव प्रमाणकी पृथक् प्रमाणता सिद्ध नहीं होती वह प्रत्यक्षादि प्रमाणों में अन्तर्हित होता है ऐसा निर्णय हो गया। इस प्रकार प्रत्यक्ष और परोक्ष के भेद से ही प्रमाण दो प्रकार ही सिद्ध होता है । अर्थात् प्रमाण के दो ही भेद हैं अधिक नहीं हैं एवं वे दो भेद प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप ही हैं अन्य प्रकारसे दो भेद नहीं हो सकते ऐसा निश्चितरूप से सिद्ध होता है । प्रभावप्रमाणका प्रत्यक्षादि प्रमाणोंमें अंतर्भाव करनेका वर्णन समाप्त प्रभावप्रमाण का प्रत्यक्षादि प्रमाणों में अन्तर्भाव करने का सारांश मीमांसक अभावप्रमाण सहित छ: प्रमाण मानता है, अभाव प्रमाण का लक्षण-पहले वस्तु के सद्भाव को जानकर तथा प्रतियोगी का स्मरण कर इन्द्रियों की अपेक्षा बिना नहीं है, इस प्रकार मन द्वारा जो ज्ञान होता है वह अभाव प्रमाण कहलाता है, पहले घटको देखा पुनः खाली पृथ्वीको देखकर उस घट की याद आयी, ७४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001276
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 1
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1972
Total Pages720
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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