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अभावस्य प्रत्यक्षादावन्तर्भावः
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किञ्च, अभावप्रमाणेनाभावग्रहणे तस्यैव प्रतिपत्तिः स्यान्न प्रतियोगिनिवृत्त: । अभावप्रतिपत्त । स्तन्निवृत्तिप्रतिपत्तिश्चत् ; सा कि प्रतियोगिस्वरूपसम्बद्धा, असम्बद्धा वा ? न तावत्सम्बद्धा; भावाभावयोस्तादात्म्यादिसम्बन्धासंभवस्य वक्ष्यमाणत्वात् । अथासम्बद्धा; तर्हि तत्प्रतिपत्तावपि कथं प्रतियोगिनिवृत्तिसिद्धिः अतिप्रसङ्गात् ? तन्निवृत्तेरप्यपरतन्निवृत्तिप्रतिपत्त्यभ्युपगमे चानवस्था ।
यच 'प्रमाणपञ्चकाभावः, तदन्यज्ञानम्, आत्मा वा ज्ञाननिमुक्तोऽभावप्रमाणम्' इति त्रिप्रकारतास्येत्युक्तम् ; तदप्ययुक्तम् ; यतः प्रमाणपञ्चकाभावो निरुपाख्यत्वात्कथं प्रमेयाभावं परिच्छिन्द्यात् परिच्छित्तेनिधर्मत्वात् ? अथ प्रमाणपञ्चकाभावः प्रमेयाभावविषयं ज्ञानं जनयन्न पचारादभावप्रमा
बात को हम आगे कहने वाले हैं। प्रतियोगी की निवृत्ति प्रतियोगी के स्वरूप से असंबद्ध है ऐसा द्वितीय पक्ष कहो तो उसके जान लेने पर भी प्रतियोगी की निवृत्ति कैसे सिद्ध होगी ? अतिप्रसंग पाता है।
उस प्रतियोगी की निवृत्ति की प्रतिपत्ति अन्य प्रतियोगी को निवृत्ति से जानी जायगी ऐसा माने तो अनवस्था होती है । मीमांसक ने अभाव प्रमाण का कथन करते हुए कहा था कि अभाव प्रमाण, प्रमाण पंचक का अभाव रूप, तदन्यज्ञान रूप, और ज्ञान निर्मुक्त आत्मारूप इस प्रकार से तीन तरह का होता है, सो यह वर्णन प्रयुक्त है, क्योंकि प्रमाणपंचकाभाव रूप जो अभाव है वह तो निरुपाख्य (निःस्वभाव) है, अतः वह प्रमेय के प्रभाव को कैसे जान सकता है ? जानना तो ज्ञान का धर्म है । यदि कहा जावे कि प्रमाण पंचकाभाव प्रमेयाभाव विषय वाले ज्ञान को उत्पन्न करता है इसलिये उपचार से उसको अभाव प्रमाण नाम से कहा जाता है ? सो ऐसा कथन भी ठीक नहीं है, क्योंकि अभाव अवस्तु है उससे प्रमेयाभाव विषयक ज्ञान पैदा होना असंभव ही है, वस्तुभूत जो पदार्थ है वही कार्य को उत्पन्न कर सकता है, अवस्तुरूप पदार्थ नहीं, क्योंकि अवस्तु सर्व प्रकार की शक्ति से रहित होती है, जैसे गधे के सींग। यदि उसमें (प्रमाणपंचकाभाव में) कार्य की सामर्थ्य है तो वह सद्भाव रूप पदार्थ ही कहलायेगा, क्योंकि यही परमार्थभूत वस्तुका लक्षण है-अन्य कुछ लक्षण नहीं है । जिसमें सत्ताका समवाय हो वह परमार्थभूत वस्तु है ऐसा लक्षण करना गलत है। क्योंकि उसका आगे हम समवाय के निराकरण करनेवाले प्रकरण में निषेध करने वाले हैं। यह भी जरूरी नहीं है कि जहां पर प्रमाणपंचकाभाव है [ पांचों प्रमाणों की प्रवृत्ति नहीं है ] वहां पर अवश्य प्रमेय के अभावका ज्ञान उत्पन्न होता ही है । क्योंकि परके मनोवृत्ति विशेषोंके साथ अनैकान्तिकता पाती है । किञ्च
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