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प्रमेयकमलमार्तण्डे
चक्षुरादिविज्ञानकारणादुपजायमानत्वात्तस्य परतोऽभिधाने तु सिद्धसाध्यता । अनुमानादिबुद्धिस्तु गृहीताविनाभावादिलिङ्गादेरुपजायमाना प्रमाणभूतैवोपजायतेऽतोऽत्रापि तेषां न व्यापारः । तन्नोत्पत्तौ तदन्यापेक्षम् ।।
नापि ज्ञप्ती, तद्धि तत्र किं कारणगुणानपेक्षते, संवादप्रत्ययं वा ? प्रथमपक्षोऽयुक्तः; गुणानां प्रत्यक्षादिप्रमाणाविषयत्वेन प्रागेवासत्त्वप्रतिपादनात् । संवादज्ञानापेक्षाप्ययुक्ता; तत्खलु समानजा
__ जैन का कहना है कि चक्षु आदि जो ज्ञान के कारण हैं उन कारणों से प्रामाण्य पैदा होता है अतः हम प्रामाण्य को पर से उत्पन्न हुआ मानते हैं सो ऐसा मानने में हम भाट्टों को कोई आपत्ति नहीं है, हम भी तो ऐसा ही सिद्ध करते हैं। प्रत्यक्षप्रमाण के प्रामाण्य में जो बात है वही अनुमानादि अन्य प्रमाणों में है । अनुमान प्रमाण साध्य के साथ जिसका अविनाभाव संबंध गृहीत हो चुका है ऐसे अविनाभावी हेतु से प्रमाणभूत ही उत्पन्न होता है । ऐसे ही आगमप्रमाण आदि जो प्रमाण हैं वे सभी प्रमाण अपने २ कारणों से प्रामाण्यसहित ही उत्पन्न होते हैं । इसलिये इन प्रत्यक्ष, अनुमान, पागम, आदि प्रमाणों में प्रामाण्य उत्पन्न कराने के लिये गुण चाहिये क्योंकि गुणों से ही प्रामाण्य होता है इत्यादि कहना गलत है । इस तरह प्रामाण्य की उत्पत्ति अन्य की अपेक्षा से होती है ऐसा उत्पत्ति का प्रथम पक्ष असिद्ध हो जाता है। इसी तरह ज्ञप्ति के पक्ष पर भी जब हम विचार करते हैं तो वहां पर भी उसे अन्य की अपेक्षा नहीं रहती है । ऐसा सिद्ध होता है । प्रामाण्य की ज्ञप्ति में अन्य कारण की अपेक्षा होती है ऐसा जैन स्वीकार करते हैं सो उनसे हम पूछते हैं कि वह अन्य कारण कौन है ? कारण (इन्द्रिय) के गुण हैं ? या संवादक ज्ञान है ? कारण के गुणों की अपेक्षा है ऐसा प्रथमपक्ष मानना ठीक नहीं है, क्योंकि अभी २ हमने यह सिद्ध कर दिया है कि गुणों का प्रत्यक्षादि प्रमाणों से ग्रहण नहीं होता है, अत: वे असत्रूप ही हैं । द्वितीय विकल्प प्रामाण्य अपनी ज्ञप्ति में संवादक ज्ञान की अपेक्षा रखता है ऐसा कहना भी बेकार है, यही प्रकट किया जाता है, ज्ञप्ति में संवादक ज्ञान की अपेक्षा रहती है ऐसा कहा सो वह संवादकज्ञान समानजाति का है ? या भिन्न जाति का है ? समानजातीय संवादकज्ञान को ज्ञप्ति का हेतु माना जावे तब भी प्रश्न पैदा होता है कि वह समानजातीय संवादकज्ञान एकसंतान से [उसी विवक्षित पुरुष से] उत्पन्न हुआ है ? अथवा दूसरे संतान से उत्पन्न हुआ है ? दूसरे संतान से उत्पन्न हुआ संवादकज्ञान इस विवक्षित प्रामाण्य का हेतु बन नहीं सकता, यदि बनेगा तो देवदत्त के घट
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