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विषय
श्रद्धा के कारण सुखादिका नियम होना भी असंभव है
आत्मा प्रत्यक्षत्ववाद का सारांश
ज्ञानांतरवेद्यज्ञानवादका पूर्व पक्ष ज्ञानांतवेद्यज्ञानवाद [ नैयायिक ]
ज्ञान दूसरे ज्ञानद्वारा वैद्य है, क्योंकि वह प्रमेय है ?
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नैयायिकका यह ज्ञानांतरवेद्यज्ञानवाद युक्त है
ज्ञान अन्यज्ञानसे वेद्य है ऐसा मानने में अनवस्था प्राती है।
जो अपनेको नहीं जान सकता वह अन्य पदार्थको कैसे जान सकता है ? स्वयंको अप्रत्यक्ष ऐसे ज्ञानसे यदि पदार्थको प्रत्यक्ष कर सकते हैं तो अन्य के ज्ञान से भी पदार्थको प्रत्यक्ष कर सकता है ? इस तरह तो ईश्वर के ज्ञान द्वारा संपूर्ण पदार्थोंको जानकर सभी प्राणी सर्वज्ञ बन सकते हैं ?
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सभी के ज्ञानों में स्वपर प्रकाश कपना जैसे महेश्वरका ज्ञान स्वपर प्रकाशक है वैसे सभीका ज्ञान है अतर यह है कि महेश्वरका ज्ञान संपूर्ण पदार्थोंका प्रकाशक है और सामान्य प्राणीका ज्ञान स्वके साथ कतिपय पदार्थोंका प्रकाशक है ३६४ ज्ञानके साथ इन्द्रियों का सन्निकर्ष नहीं हो सकता
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विषय
"स्वात्मनि क्रिया विरोधः" इस वाक्यका
क्या अर्थ है ?
भवति श्रादि क्रियाका क्रियावान आत्मामें विरोध नहीं हो सकता ज्ञानमें कर्मत्वका विरोध है वह अन्य
ज्ञान द्वारा जानने की अपेक्षा या स्वरूपकी अपेक्षा ?
विशेषज्ञानको कररणरूप और विशेष्य
ज्ञानको फल रूप मानना गलत है ३७१ विशेषरण और विशेष्यको ग्रहण करनेवाला एक ही ज्ञान है
विशेषण - विशेष्य ज्ञानोंको भिन्न मानकर उनकी शीघ्र वृत्तिके लिये कमल-पत्रोंके छेदनका उदाहरण देना असत है
परमतका अभीष्ट मन प्रसिद्ध है, अनुमानद्वारा उसकी सिद्धि करना भी अशक्य है
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मन और आत्माका संबंध सर्वदेश से होगा तो दोनों एकमेक होवें गे मनको परवादीने अनाधेय, अ
माना अतः ऐसे मनसे आत्माका उपकार होना असंभव है अष्टद्वारा मनको प्रेरित करना भी अशक्य है ईश्वरादिके अनेकों ज्ञान मानते हो सो प्रथमज्ञान रहते हुए दूसरा ज्ञान उत्पन्न होता है अथवा उसके नष्ट होनेपर दूसरा उत्पन्न होता है ? ३८० प्रथमज्ञानको द्वितीयज्ञान जानता है ऐसा माने तो अनवस्था होगी
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