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भूतचैतन्यवादः
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चाखिलापत्यानां स्यात् । परस्परं वा तेषां प्रत्यभिज्ञानप्रसङ्गः स्यात्, एकसन्तानोद्भ तदर्शनस्पर्शनप्रत्ययवत् ।
_ 'ज्ञानेनाहं घटादिकं जानामि' इत्यहम्प्रत्ययप्रसिद्धत्वाचात्मनो नापलापो युक्तः । अत्र हि यथा कर्मतया विषयस्यावभासस्तथा कर्तृतयात्मनोपि । न चात्र देहेन्द्रियादीनां कर्तृता; घटादिवत्त षामपि कर्मतयाऽवभासनात्, तदप्रतिभासनेप्यहम्प्रत्ययस्यानुभवात् । न हि बहलतमःपटलपटावगुण्ठितविग्रहस्योपरतेन्द्रियव्यापारस्य गौरस्थौल्यादिधर्मोपेतं शरीरं प्रतिभासते। अहम्प्रत्ययः स्वसंविदितः पुनस्तस्यानुभूयमानो देहेन्द्रियविषयादिव्यतिरिक्तार्थालम्बनः सिद्ध्यतीति प्रमाणप्रसिद्धोऽनादिनिधनो द्रव्यान्त
होने लगेगा ॥ "मैं ज्ञान के द्वारा घट को जानता हूं" इस अहं प्रत्यय से अत्मा की सिद्धि हो रही है इसलिये भी आत्मद्रव्य का अपलाप करना शक्य नहीं है । "मैं ज्ञान के द्वारा घट आदि को जानता हूं" इस प्रकार की प्रतीति में जैसे बाह्य पदार्थ घट आदि का कर्मपने से प्रतिभास होता है वैसे ही आत्मा का कर्त्तापने से प्रतिभास हो ही रहा है, इस प्रतीति में कर्ता का जो प्रतिभास है वह शरीर या इन्द्रिय आदि के निमित्त से नहीं है क्योंकि शरीर आदिक तो घटादि पदार्थों के समान कर्मरूप से प्रतीति में आते हैं। शरीर आदि का प्रतिभास नहीं होने पर भी अहं प्रत्यय तो अनुभव में आता ही रहता है। शरीर के बिना अहं प्रत्यय कैसे प्रतीति में आता है सो बताते हैं-कोई पुरुष गाढ अन्धकार में बैठा है उसका शरीर अन्धकार के निमित्त से बिलकुल खुद को भी दिखायी नहीं दे रहा है, तथा उसने अपनी सारो नेत्र आदि इन्द्रियां भी बंद कर रखी हैं, उससमय उस पुरुष को अपना गोरा स्थूल आदि स्वभाव वाला शरीर तो प्रतीत होता नहीं, किन्तु प्रात्मा तो अवश्य अहं प्रत्ययस्वरूप संवेदन में पा रहा है, यह अहं प्रत्यय शरीर इन्द्रियां, मन आदि से न्यारा ही आत्मद्रव्य का अवलंबन लेकर प्रवृत्त हुआ है, इसलिये अनादि निधन एक पृथक् तत्त्व भूत ऐसा आत्मा प्रमाण प्रसिद्ध है । यह सिद्ध हो जाता है, आत्मा आदि अंत रहित अनादि निधन है क्योंकि वह एक द्रव्य है, जैसे पृथिवी आदि द्रव्य होने से अनादिनिधन है । इस अनुमान में दिया गया द्रव्यत्व हेतु आश्रयासिद्ध दोष वाला नहीं है, क्योंकि इस द्रव्यत्वरूप हेतु का आश्रय प्रात्मा है । जो अहं प्रत्यय से सिद्ध हो चुका है। इस द्रव्यत्व हेतु का स्वरूप भी प्रसिद्ध नहीं है । अर्थात् यह हेतु स्वरूपासिद्ध भी नहीं है, क्योंकि आत्मा द्रव्य लक्षण से लक्षित (सहित) है, देखो-सिद्ध करके बताते हैं । आत्मा द्रव्य है क्योंकि उसमें गुण और पर्यायें पायी जाती हैं जैसे कि पृथिवी आदि में गुण पर्याय होने से उन्हें द्रव्य मानते हैं । यहां इस दूसरे अनुमान
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